हर दिन बढ़ते वज़न से
हो गये हम परेशान
उपदेश सुन सुन सबसे
मन हो गया हलकान
शुरू की हमने रोज़
सुबह की सैर
मनाते हुए भगवान से
अपने तन की खैर
कुछ वज़न कम हुआ
और हल्के लगे पैर
खुश हो, शुरू की
शाम की भी सैर
शाम को सड़कों पे
रौनक रहती खूब
समोसे चाट पकौड़ी की
आवाज़ में जाते डूब
उन्हें देख बार-बार
जी खूब ललचाता
मुँह में पानी का
दरिया सा बन जाता
अरे थोड़ा खाने में
शरीर का क्या है जाता
भूखे रहकर भी
कहाँ जिया जाता
अपने दिमाग को
हमने यूँ बहकाया
दिल को भी इसी तरह
थोड़ा सा फुसलाया
दिल की बात जो
लगी पेट को भाने
वज़न की सुइयाँ फिर
लगीं आगे को जाने
जब वजन बढ़ा
पहले से भी ज्यादा
छूट गया शाम की
सैर का इरादा
सन्ध्या गोयल सुगम्या