मेरी कविता
मुँह से अनायास निकले शब्द
कविता बन जाते हैं
पर प्रयत्न करने पर वे
जुबाँ पर नहीं आते हैं
यह अजीब आश्चर्य है
जिसे मैं भी जान न पायी
कि चाहकर भी मैं किसी के लिए
क्यों न कुछ लिख पायी
कवि तो वह है, जो अपने भावों को
कविता में ढाल सके
जब चाहे जिसके लिए
दो शब्द लिख सके
पर ....
मेरे मन में तो कभी अचानक ही
भावों की सरिता आती है
और अनायास ही
कविता में बदल जाती है
और कभी चाहकर भी
भावों का ज्वार उठने पर भी
शब्द के मोती न मिल पाते हैं
और मेरी कविता को
अधूरी ही छोड़ जाते हैं
मैं रह जाती हूँ
बालू में मोती ढूँढती हुई
और समय की गाड़ी
रफ़्तार से निकल जाती है
(मेरी आरंभिक कविताओं में से एक)
(छात्र जीवन में लिखी हुई मेरी कविता )