"आओ, कुछ देर बैठें"
आओ कुछ देर बैठें
सुस्तायें
पलकें झपकायें
कुछ तुम सुनाओ
कुछ हम बतायें
मशीनों और वाहनों के
इस शोर में, कहीं हम
बतियाना न भूल जायें
चलो कहीं चलें
दूर पहाड़ों के पीछे
या घने बादलों के नीचे
कुछ हम दौड़ें
कुछ निगाहें दौड़ाएं
ताकें खाली आसमाँ को
ढूँढें उस जहाँ को
जिसे न तुमने खोजा है
न हमने पाया है
आँखों में भर लें इस नीले आसमाँ को
हथेलियों में छुपा लें
कोमल बादलों को
ज़िन्दगी की कठोर चट्टान पर
चढ़ते चढ़ते,कहीं इन
पसीजी हथेलियों को
न भूल जाएं
आओ कुछ देर बैठें
सुस्तायें
ज़िन्दगी की इस भीड़ में
कहीं हम
खुद ही न खो जाएँ
(सन्ध्या गोयल)