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आज के युग में गीता की प्रासंगिकता

28 दिसम्बर 2022

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मैं भगवत गीता से ऐसी शक्ति पाता हूं जो मुझे पर्वत पर उपदेश देने पर भी नहीं मिलती। जब निराशा मेरे सम्मुख उपस्थित होती है और नितांत एकाकी मैं प्रकाश की एक किरण भी नहीं देख पाता तब मैं भगवत गीता की और लौटता हूं। मुझे यहां अथवा वहां एक श्लोक मिल जाता है और मैं तत्काल ही अत्यधिक दुखों के बीच मुस्कुराने लगता हूं। यह शब्द है महात्मा गांधी के जो उन्होंने गीता के बारे में यंग इंडिया में लिखें
भगवत गीता एक ऐसी रचना है जो सहस्त्रो वर्ष के बीत जाने पर भी आज भी उतनी ही सार्वभौमिक और शाश्वत है। गीता का उद्भव कुरुक्षेत्र के मैदान पर उस समय हुआ जब कौरव व पांडव सेना आमने सामने खड़ी थी और अर्जुन विरोधी पक्ष में अपने बंधुबांधव ,पितामह ,गुरुजनों व सुहदजनों को देखकर किकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है और युद्ध करने की अपेक्षा युद्ध से पलायन उसे तर्कसंगत लगता है। इस दशा में विश्वेश्वर कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया, वहीं गीता में वर्णित है। यह मात्र युद्ध का वर्णन नहीं है अपितु युद्ध के रूप को सामने रखकर रची गई वह अमृतवाणी है जो आज भी हमारे अंतर्मन को नई रोशनी दिखाती है। यह अर्जुन के माध्यम से हमारे अंतर्मन के अंदर चलने वाले, उठने वाले द्वंद्वों का उत्तर देती है। यह हमारे मन के अंदर उपस्थित सत प्रवृत्तियों व दुष्ट प्रवृत्तियों के बीच चलने वाले संग्राम में हमारे मन को किस प्रकार उन पर नियंत्रण करना है यह सिखाती है।
आज का युग वैज्ञानिक व तकनीकी युग है। संचार के अत्याधुनिक उपकरणों ,अत्याधुनिक साधनों, सुविधाओं ने मानव की जिंदगी में कभी ना खत्म होने वाली इच्छाओं की बाढ़ ला दी है। भौतिकता की दौड़ में सुख समृद्धि की चाह में आज हमारे मानवीय मूल्य, नैतिकता सब कुछ खो गया है। ना शांति है ना सुखचैन। स्वार्थपरता बढ़ी है मानव मानव से दूर हो रहा है मनुष्य अकेला है ,हताश है, निराश है। सब कुछ पा लेने पर भी उसके पास संतोष नहीं है ।अनेक मानसिक व शारीरिक व्याधियों ने उसे घेर लिया है। ऐसे में गीता का मुख्य प्रयोजन जीवन की समस्याओं को हल करके न्याययोचित आचरण की प्रेरणा देना है। गीता का मुख्य विषय कर्म योग है। कर्म योग के अनुसार कर्म करना मानव का नैसर्गिक स्वभाव है। मानव क्षण भर भी बिना कर्म के नहीं रह सकता है। गीता हमें बताती है की दो प्रकार के कर्म होते है सकाम कर्म और निष्काम कर्म। सकाम कर्म वह कर्म है जो फल की आकांक्षा की इच्छा से किए जाते हैं ।और निष्काम कर्म वह कर्म है जो फल आकांक्षा की आकांक्षा रखे बिना किए जाते हैं। गीता का दर्शन निष्काम कर्म का दर्शन है । यह आज
 भी उतना ही प्रासंगिक है जितना पहले था।
                                                        (©ज्योति)
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रचनाएँ
आज के युग में गीता दर्शन की प्रासंगिकता
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यह किताब गीता दर्शन पर आधारित है। आज के युग में गीता दर्शन की प्रासंगिकता एक ऐसा विषय है जो हमें सोचने पर मजबूर करता है की गीता केबल महाभारत के युद्ध क्षेत्र का वर्णन नहीं है, अर्जुन और कृष्ण के मध्य संवाद नहीं है बल्कि युद्ध क्षेत्र में अर्जुन के मन में जो भी प्रश्न उठ रहे हैं उनका उत्तर है। यह हमारे मन क्षेत्र मे उठने वाले विचारों द्वंद्वों का समाधान है। यह वह अमृतवाणी है, जिसे सुनने से, जिसे पढ़ने से मनुष्य को शांति, उत्साह, ऊर्जा मिलती है।
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आज के युग में गीता की प्रासंगिकता

28 दिसम्बर 2022
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मैं भगवत गीता से ऐसी शक्ति पाता हूं जो मुझे पर्वत पर उपदेश देने पर भी नहीं मिलती। जब निराशा मेरे सम्मुख उपस्थित होती है और नितांत एकाकी मैं प्रकाश की एक किरण भी नहीं देख पाता तब मैं भगवत गीता की और लौ

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आधुनिक युग में निष्काम कर्म की अवधारणा

4 जनवरी 2023
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निष्काम कर्म के अनुसार भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं हे अर्जुन !तू कर्म कर !फल की इच्छा मत कर। कर्तव्य के लिए कर्म कर। आज के युग में भी गीता के निष्काम कर्म योग की उपयोगिता निर्विवाद

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गीता में स्वधर्म की अवधारणा

6 जनवरी 2023
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गीता में स्वधर्म के महत्व को स्वीकार कर इसे प्रतिपादित किया गया है। गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है की चार वर्णों ब्राह्मण क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र की रचना गुण एवं कर्म के आधार पर मेरे द्वारा की गई है।

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गीता और धार्मिक सहिष्णुता की भावना

6 जनवरी 2023
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गीता द्वारा मानव समाज को दी गई धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा आज भी अनुकरणीय है। इसकी शिक्षा सार्वभौम है ,धर्म जाति ,संप्रदाय, देश काल ,परिस्थिति की सीमाओं से परे है। गीता को सभी उपासना पद्धतियों स

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गीता में कर्म ,ज्ञान एवं भक्ति का समन्वय

7 जनवरी 2023
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गीता का अमर संदेश सार्वकालिक और सार्वदेशिक है। इसमें कर्म ,ज्ञान और भक्ति का समन्वय किया गया है। भारतीय विचारधारा के निर्माण में इसकी महती भूमिका है। मनुष्य के हृदय में ज्ञान ,भक्ति ,कर्म का समन

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गीता का उदभव

7 जनवरी 2023
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भगवत गीता भारतीय विचारधारा का एक अत्यंत लोकप्रिय दार्शनिक, धार्मिक एवं नैतिक काव्य है ।यह महाभारत के भीष्म पर्व का एक भाग है ।गीता को सभी उपनिषदों का निचोड़ कहा जाता है ।गीता के इस ग्रंथ का उद्भव कुरु

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गीता में कर्म योग का अर्थ

8 जनवरी 2023
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कर्म योग गीता का प्रतिपाद्य प्रमुख विषय है ,इसमें निष्काम कर्म योग अर्थ पर हम विचार करेंगे। निष्काम शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के नि:+ काम शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है पर

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निष्काम कर्म योग में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति

9 जनवरी 2023
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निष्काम कर्म योग में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति के दो परस्पर विरोधी आदर्शों का समन्वय होता है। प्रवृत्ति का आदर्श कर्म का आदर्श है इस से प्रेरित व्यक्ति समाज में रहते हुए सुख प्राप्ति के लिए कर्म कर

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निष्काम कर्म का महत्व

10 जनवरी 2023
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यह गीता का निष्काम कर्म ही है जो आज के मानव को उसकी समस्याओं से ऊपर उठकर कर्तव्य के लिए कर्तव्य करने की प्रेरणा देता है। आधुनिक पाश्चात्य नैतिक दर्शन में प्रसिद्ध वैज्ञानिक दार्शनिक कांट ने भी गीता के

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