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गीता का उदभव

7 जनवरी 2023

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भगवत गीता भारतीय विचारधारा का एक अत्यंत लोकप्रिय दार्शनिक, धार्मिक एवं नैतिक काव्य है ।यह महाभारत के भीष्म पर्व का एक भाग है ।गीता को सभी उपनिषदों का निचोड़ कहा जाता है ।गीता के इस ग्रंथ का उद्भव कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में उस समय हुआ, जब कौरवों और पांडवों की सेनाएं युद्ध भूमि में दोनों और युद्ध के लिए खड़ी थी ।यह युद्ध था धर्म और अधर्म के बीच,। एक तरफ पांडवों की सेना थी ,जिसके पास थे विश्वेश्वर कृष्ण और दूसरी और कौरवों की सेना थी, जिसके पास कृष्ण की सेना के साथ साथ भीष्म, द्रोण ,कृपाचार्य, करण जैसे अनेक महारथी थे । गीता की काव्यधारा शुरू हुई तब,  जब अर्जुन ने अपने विरोध में अपने स्वजनों अपने परिवारजनों को देखकर करुणा से भर कर किकर्तव्यविमूढ होकर कहा, "मैं युद्ध नहीं करूंगा।"उस अनिश्चय की स्थिति में उसे उसके कर्तव्य का भान कराने के लिए भगवान श्री कृष्ण द्वारा गीता का उपदेश दिया गया। गीता उसी साक्षात भगवान का गाया गया दिव्य संगीत है।भगवान ने यह दिव्य  संगीत पर्वत की किसी प्रशांत गुफा या कहीं अति मनोरम एकांत स्थान पर नहीं गाया था बल्कि अत्यंत कोलाहल पूर्ण युद्ध के मैदान में इसे सुनाया था। पारिवारिक मुंह से विषाद मना महारथी अर्जुन को उनके चिर सखा श्री कृष्ण ने जो तब उनके रथ के सारथी बने थे जो उपदेश दिया था उसी को महर्षि वेदव्यास ने संकलित कर अपनी कृति महाभारत ग्रंथ के मध्य में भीष्म पर्व में रख दिया। इसके लेखक प्रथम देव गणपति हैं। यह गीता ज्ञान अट्ठारह अध्यायों में विभक्त है। इस में 700 श्लोक हैं। विभिन्न विद्वानों ने इसे पांचवीं शताब्दी ईस्वी पूर्व से पहले की रचना स्वीकार किया है ।परंपरा महर्षि व्यास को इसका रचनाकार बताया जाता है ।गीता में किसी भी मत को   या धर्म के प्रति निरादर का भाव देखने को नहीं मिलता है अपितु सभी प्रकार के विरोधात्मक विचारों में से सत्य को ग्रहण कर उनमें समन्वय स्थापित किया गया है। इसलिए गीता वीतरागी  परमहंस सन्यासियों से लेकर सामान्य गृहस्थ तक प्रखर दार्शनिकों से लेकर मातृभूमि के महान सेनानियों और फांसी के फंदे पर सहर्ष  झूलने वाले मतवाले क्रांतिकारियों की प्रेरणा स्त्रोत रही है।
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रचनाएँ
आज के युग में गीता दर्शन की प्रासंगिकता
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यह किताब गीता दर्शन पर आधारित है। आज के युग में गीता दर्शन की प्रासंगिकता एक ऐसा विषय है जो हमें सोचने पर मजबूर करता है की गीता केबल महाभारत के युद्ध क्षेत्र का वर्णन नहीं है, अर्जुन और कृष्ण के मध्य संवाद नहीं है बल्कि युद्ध क्षेत्र में अर्जुन के मन में जो भी प्रश्न उठ रहे हैं उनका उत्तर है। यह हमारे मन क्षेत्र मे उठने वाले विचारों द्वंद्वों का समाधान है। यह वह अमृतवाणी है, जिसे सुनने से, जिसे पढ़ने से मनुष्य को शांति, उत्साह, ऊर्जा मिलती है।
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आज के युग में गीता की प्रासंगिकता

28 दिसम्बर 2022
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मैं भगवत गीता से ऐसी शक्ति पाता हूं जो मुझे पर्वत पर उपदेश देने पर भी नहीं मिलती। जब निराशा मेरे सम्मुख उपस्थित होती है और नितांत एकाकी मैं प्रकाश की एक किरण भी नहीं देख पाता तब मैं भगवत गीता की और लौ

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आधुनिक युग में निष्काम कर्म की अवधारणा

4 जनवरी 2023
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निष्काम कर्म के अनुसार भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं हे अर्जुन !तू कर्म कर !फल की इच्छा मत कर। कर्तव्य के लिए कर्म कर। आज के युग में भी गीता के निष्काम कर्म योग की उपयोगिता निर्विवाद

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गीता में स्वधर्म की अवधारणा

6 जनवरी 2023
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गीता में स्वधर्म के महत्व को स्वीकार कर इसे प्रतिपादित किया गया है। गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है की चार वर्णों ब्राह्मण क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र की रचना गुण एवं कर्म के आधार पर मेरे द्वारा की गई है।

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गीता और धार्मिक सहिष्णुता की भावना

6 जनवरी 2023
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गीता द्वारा मानव समाज को दी गई धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा आज भी अनुकरणीय है। इसकी शिक्षा सार्वभौम है ,धर्म जाति ,संप्रदाय, देश काल ,परिस्थिति की सीमाओं से परे है। गीता को सभी उपासना पद्धतियों स

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गीता में कर्म ,ज्ञान एवं भक्ति का समन्वय

7 जनवरी 2023
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गीता का अमर संदेश सार्वकालिक और सार्वदेशिक है। इसमें कर्म ,ज्ञान और भक्ति का समन्वय किया गया है। भारतीय विचारधारा के निर्माण में इसकी महती भूमिका है। मनुष्य के हृदय में ज्ञान ,भक्ति ,कर्म का समन

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गीता का उदभव

7 जनवरी 2023
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भगवत गीता भारतीय विचारधारा का एक अत्यंत लोकप्रिय दार्शनिक, धार्मिक एवं नैतिक काव्य है ।यह महाभारत के भीष्म पर्व का एक भाग है ।गीता को सभी उपनिषदों का निचोड़ कहा जाता है ।गीता के इस ग्रंथ का उद्भव कुरु

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गीता में कर्म योग का अर्थ

8 जनवरी 2023
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कर्म योग गीता का प्रतिपाद्य प्रमुख विषय है ,इसमें निष्काम कर्म योग अर्थ पर हम विचार करेंगे। निष्काम शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के नि:+ काम शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है पर

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निष्काम कर्म योग में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति

9 जनवरी 2023
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निष्काम कर्म योग में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति के दो परस्पर विरोधी आदर्शों का समन्वय होता है। प्रवृत्ति का आदर्श कर्म का आदर्श है इस से प्रेरित व्यक्ति समाज में रहते हुए सुख प्राप्ति के लिए कर्म कर

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निष्काम कर्म का महत्व

10 जनवरी 2023
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यह गीता का निष्काम कर्म ही है जो आज के मानव को उसकी समस्याओं से ऊपर उठकर कर्तव्य के लिए कर्तव्य करने की प्रेरणा देता है। आधुनिक पाश्चात्य नैतिक दर्शन में प्रसिद्ध वैज्ञानिक दार्शनिक कांट ने भी गीता के

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