भगवत गीता भारतीय विचारधारा का एक अत्यंत लोकप्रिय दार्शनिक, धार्मिक एवं नैतिक काव्य है ।यह महाभारत के भीष्म पर्व का एक भाग है ।गीता को सभी उपनिषदों का निचोड़ कहा जाता है ।गीता के इस ग्रंथ का उद्भव कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में उस समय हुआ, जब कौरवों और पांडवों की सेनाएं युद्ध भूमि में दोनों और युद्ध के लिए खड़ी थी ।यह युद्ध था धर्म और अधर्म के बीच,। एक तरफ पांडवों की सेना थी ,जिसके पास थे विश्वेश्वर कृष्ण और दूसरी और कौरवों की सेना थी, जिसके पास कृष्ण की सेना के साथ साथ भीष्म, द्रोण ,कृपाचार्य, करण जैसे अनेक महारथी थे । गीता की काव्यधारा शुरू हुई तब, जब अर्जुन ने अपने विरोध में अपने स्वजनों अपने परिवारजनों को देखकर करुणा से भर कर किकर्तव्यविमूढ होकर कहा, "मैं युद्ध नहीं करूंगा।"उस अनिश्चय की स्थिति में उसे उसके कर्तव्य का भान कराने के लिए भगवान श्री कृष्ण द्वारा गीता का उपदेश दिया गया। गीता उसी साक्षात भगवान का गाया गया दिव्य संगीत है।भगवान ने यह दिव्य संगीत पर्वत की किसी प्रशांत गुफा या कहीं अति मनोरम एकांत स्थान पर नहीं गाया था बल्कि अत्यंत कोलाहल पूर्ण युद्ध के मैदान में इसे सुनाया था। पारिवारिक मुंह से विषाद मना महारथी अर्जुन को उनके चिर सखा श्री कृष्ण ने जो तब उनके रथ के सारथी बने थे जो उपदेश दिया था उसी को महर्षि वेदव्यास ने संकलित कर अपनी कृति महाभारत ग्रंथ के मध्य में भीष्म पर्व में रख दिया। इसके लेखक प्रथम देव गणपति हैं। यह गीता ज्ञान अट्ठारह अध्यायों में विभक्त है। इस में 700 श्लोक हैं। विभिन्न विद्वानों ने इसे पांचवीं शताब्दी ईस्वी पूर्व से पहले की रचना स्वीकार किया है ।परंपरा महर्षि व्यास को इसका रचनाकार बताया जाता है ।गीता में किसी भी मत को या धर्म के प्रति निरादर का भाव देखने को नहीं मिलता है अपितु सभी प्रकार के विरोधात्मक विचारों में से सत्य को ग्रहण कर उनमें समन्वय स्थापित किया गया है। इसलिए गीता वीतरागी परमहंस सन्यासियों से लेकर सामान्य गृहस्थ तक प्रखर दार्शनिकों से लेकर मातृभूमि के महान सेनानियों और फांसी के फंदे पर सहर्ष झूलने वाले मतवाले क्रांतिकारियों की प्रेरणा स्त्रोत रही है।
यह किताब गीता दर्शन पर आधारित है। आज के युग में गीता दर्शन की प्रासंगिकता एक ऐसा विषय है जो हमें सोचने पर मजबूर करता है की गीता केबल महाभारत के युद्ध क्षेत्र का वर्णन नहीं है,
अर्जुन और कृष्ण के मध्य संवाद नहीं है बल्कि युद्ध क्षेत्र में अर्जुन के मन में जो भी प्रश्न उठ रहे हैं उनका उत्तर है। यह हमारे मन क्षेत्र मे उठने वाले विचारों द्वंद्वों का समाधान है। यह वह अमृतवाणी है, जिसे सुनने से, जिसे पढ़ने से मनुष्य को शांति, उत्साह, ऊर्जा मिलती है।