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गीता में कर्म ,ज्ञान एवं भक्ति का समन्वय

7 जनवरी 2023

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गीता का अमर संदेश सार्वकालिक और सार्वदेशिक है। इसमें कर्म ,ज्ञान और भक्ति का समन्वय  किया गया है। भारतीय विचारधारा के निर्माण में इसकी महती भूमिका है। मनुष्य के हृदय में ज्ञान ,भक्ति ,कर्म का समन्वय हो जाता है तो उसके कर्म दैवीय हो जाते हैं। वह  दैवीय संपदाओं  का स्वामी व मानव से महामानव बन जाता है। उस का सर्वांगीण विकास होता है।
 गीता के निष्काम कर्म योग में ज्ञान ,कर्म ,भक्ति का समन्वय है जिससे मानव जीवन के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त कर सामाजिक लोगों के लिए अनुकरणीय बन जाता है। ऐसे मानव  रत्न जिस धरा पर हो, जिस देश में हो ,उसको बुलंदियों तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता। आज हम मनोविज्ञान के आधार पर मानव मन को जानने की बात करते हैं। गीता में मनोविज्ञान के आधार पर स्वधर्म ,निष्काम कर्म ,भक्ति ,ज्ञान व कर्मयोग का समन्वय किया है, वह अपने में बेजोड़ है। जेडब्ल्यू हायर ने लिखा है कि यह हमें जीवन का अर्थ समझाने के लिए नहीं बल्कि अपना कर्तव्य खोजने के लिए और कर्म करने के लिए अथवा कर्म की सहायता से जीवन की पहेली पर अधिकार करने के लिए कहती है। कितना गूढ़ अर्थ छिपा है इसमें? गीता हमें कर्मों को कामना रहित होकर करना नहीं सिखाती ,बल्कि सर्व धर्म को छोड़कर दैवी जीवन का अनुसरण करना ,एकमात्र परम में शरण लेना सिखाती है, और एक बुद्ध, एक रामकृष्ण 
  और एक विवेकानंद का दैवी कर्म उसके उपदेश से पूर्ण सामंजस्य में है। गीता ने समाज में अपनी अमृतवाणी से नई जागृति फैलाई। भक्तियोग , कर्मयोग, ज्ञान योग की व्याख्या की, उसका समन्वय किया। गीता प्रत्येक व्यक्ति से अपने कर्तव्य कर्मों के ,सामाजिक कर्तव्यों के ,स्वधर्म के ,संपादन का आग्रह करती है ।वह कहती है हमें राग ,द्वेष, काम, क्रोध अस्मिता ,अहंकार आदि निम्न कोटि के मनोवेगो  से परिचालित होकर कर्म नहीं करना चाहिए ।यह स्थिति आत्म संयम और  ल इंद्रिय निग्रह (ज्ञान) से आती है ।गीता फलाकांक्षा का परित्याग करके कर्म को ईश्वर को समर्पित करने का आग्रह करती है, उसके अनुसार प्राणी अपने कर्मों से उसकी आराधना करके सिद्धि प्राप्त  करते हैं ,इससे उसमें भक्ति का तत्व आ जाता है।
आज के इस युग में जहां मानव मानव का शत्रु बना हुआ है, लोग परेशानियों से घिरे हुए हैं। भौतिकता की , चाह ने उनका जीवन अंधकारमय  बना दिया है ।उनकी मनचेतना इतना नीचे गिर चुकी है ।आदमी का  मानसिक  पतन हो चुका है ।वह मानसिक व्याधियों से त्रस्त है। ऐसे में गीता की अमृतवाणी, गीता का दर्शन उनके जीवन के अंधकार में एक नई रोशनी जगाता है।
(©ज्योति)
 Dr.Jyoti Maheshwari

Dr.Jyoti Maheshwari

गीता में कर्म ,ज्ञान ,भक्ति का समन्वय मनुष्य को नई राह दिखाता है। और उसके जीवन को मानव से महामानव की ओर अग्रसर करता है।

7 जनवरी 2023

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रचनाएँ
आज के युग में गीता दर्शन की प्रासंगिकता
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यह किताब गीता दर्शन पर आधारित है। आज के युग में गीता दर्शन की प्रासंगिकता एक ऐसा विषय है जो हमें सोचने पर मजबूर करता है की गीता केबल महाभारत के युद्ध क्षेत्र का वर्णन नहीं है, अर्जुन और कृष्ण के मध्य संवाद नहीं है बल्कि युद्ध क्षेत्र में अर्जुन के मन में जो भी प्रश्न उठ रहे हैं उनका उत्तर है। यह हमारे मन क्षेत्र मे उठने वाले विचारों द्वंद्वों का समाधान है। यह वह अमृतवाणी है, जिसे सुनने से, जिसे पढ़ने से मनुष्य को शांति, उत्साह, ऊर्जा मिलती है।
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आज के युग में गीता की प्रासंगिकता

28 दिसम्बर 2022
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मैं भगवत गीता से ऐसी शक्ति पाता हूं जो मुझे पर्वत पर उपदेश देने पर भी नहीं मिलती। जब निराशा मेरे सम्मुख उपस्थित होती है और नितांत एकाकी मैं प्रकाश की एक किरण भी नहीं देख पाता तब मैं भगवत गीता की और लौ

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आधुनिक युग में निष्काम कर्म की अवधारणा

4 जनवरी 2023
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निष्काम कर्म के अनुसार भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं हे अर्जुन !तू कर्म कर !फल की इच्छा मत कर। कर्तव्य के लिए कर्म कर। आज के युग में भी गीता के निष्काम कर्म योग की उपयोगिता निर्विवाद

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गीता में स्वधर्म की अवधारणा

6 जनवरी 2023
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गीता में स्वधर्म के महत्व को स्वीकार कर इसे प्रतिपादित किया गया है। गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है की चार वर्णों ब्राह्मण क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र की रचना गुण एवं कर्म के आधार पर मेरे द्वारा की गई है।

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गीता और धार्मिक सहिष्णुता की भावना

6 जनवरी 2023
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गीता द्वारा मानव समाज को दी गई धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा आज भी अनुकरणीय है। इसकी शिक्षा सार्वभौम है ,धर्म जाति ,संप्रदाय, देश काल ,परिस्थिति की सीमाओं से परे है। गीता को सभी उपासना पद्धतियों स

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गीता में कर्म ,ज्ञान एवं भक्ति का समन्वय

7 जनवरी 2023
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गीता का अमर संदेश सार्वकालिक और सार्वदेशिक है। इसमें कर्म ,ज्ञान और भक्ति का समन्वय किया गया है। भारतीय विचारधारा के निर्माण में इसकी महती भूमिका है। मनुष्य के हृदय में ज्ञान ,भक्ति ,कर्म का समन

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गीता का उदभव

7 जनवरी 2023
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भगवत गीता भारतीय विचारधारा का एक अत्यंत लोकप्रिय दार्शनिक, धार्मिक एवं नैतिक काव्य है ।यह महाभारत के भीष्म पर्व का एक भाग है ।गीता को सभी उपनिषदों का निचोड़ कहा जाता है ।गीता के इस ग्रंथ का उद्भव कुरु

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गीता में कर्म योग का अर्थ

8 जनवरी 2023
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कर्म योग गीता का प्रतिपाद्य प्रमुख विषय है ,इसमें निष्काम कर्म योग अर्थ पर हम विचार करेंगे। निष्काम शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के नि:+ काम शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है पर

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निष्काम कर्म योग में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति

9 जनवरी 2023
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निष्काम कर्म योग में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति के दो परस्पर विरोधी आदर्शों का समन्वय होता है। प्रवृत्ति का आदर्श कर्म का आदर्श है इस से प्रेरित व्यक्ति समाज में रहते हुए सुख प्राप्ति के लिए कर्म कर

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निष्काम कर्म का महत्व

10 जनवरी 2023
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यह गीता का निष्काम कर्म ही है जो आज के मानव को उसकी समस्याओं से ऊपर उठकर कर्तव्य के लिए कर्तव्य करने की प्रेरणा देता है। आधुनिक पाश्चात्य नैतिक दर्शन में प्रसिद्ध वैज्ञानिक दार्शनिक कांट ने भी गीता के

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