निष्काम कर्म के अनुसार भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं हे अर्जुन !तू कर्म कर !फल की इच्छा मत कर। कर्तव्य के लिए कर्म कर। आज के युग में भी गीता के निष्काम कर्म योग की उपयोगिता निर्विवाद है। पहले राजनीति व प्रशासनिक सेवाएं समाज सेवा का साधन हुआ करती थीं। मगर आज राजनीति का ध्रुवीकरण हो गया है ।भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता की राजनीति ने
समाज को जातीय, धार्मिक ,आर्थिक व सामाजिक आदि आधारों पर विभाजित कर ,मानव को जाति ,राज्य, प्रांत, देश धर्म आदि के आधार पर बांट दिया है। गीता का निष्काम कर्म हमें अपने कर्तव्य के लिए काम करने की प्रेरणा देता है। यदि हमारा वर्तमान नेतृत्व और सेवा संवर्ग ही निष्काम भाव से योजनाओं का निर्माण एवं कार्यान्वयन करें तो लोक सेवा का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं यदि हमारे देश का प्रत्येक मनुष्य निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर, संकीर्णता की दीवारों को गिरा कर निष्काम भाव से अपने कर्तव्य का पालन करें तो हमारी समस्याएं भ्रष्टाचार ,बेरोजगारी, गरीबी आदि स्वत ही समाप्त हो जाएंगी। मानव की विचारधारा व्यापक होगी। समाज में एकता समरसता का माहौल बनेगा। हमारा देश निरंतर उन्नति की ओर प्रगतिशील होगा। हम अपनी सामाजिक समस्याओं को मिलजुल कर दूर कर पाएंगे। गीता का निष्काम कर्म ना केवल हमें जीवन जीना सिखाता है वरन् हमें हमारे जीवन के अंतिम लक्ष्य को समझने, जानने की शक्ति देता है। निष्काम भाव से कर्म करने से हम कर्म में आसक्त नहीं होते तथा हमारे कर्म परमार्थ परायण हो जाते हैं । लोक संग्रह वालों लोको पकार के काम निष्काम भाव से ही संभव है। इस विश्व में जितने महापुरुष व युगपुरुष हुए हैं उन्होंने निष्काम भाव से कर्मों का संपादन कर समाज व देश को नई ऊंचाइयो प्रदान की है।
गीता का लोक संग्रह का आदर्श प्रागैतिहासिक काल से ही राज्य के लोक कल्याणकारी स्वरूप की याद दिलाता है। गीता पुरुषोत्तम एवं मुक्त आत्माओं को लोक कल्याण हेतु प्रयासरत दिखाकर मानव मात्र को लोक कल्याण हेतु प्रेरित करती हैं। जब लोक कल्याण , लोकोपकार की भावना से मनुष्य निष्काम कर्म करेगा तो समाज में व्याप्त हिसा ,घृणा नफ़रत, द्वेष जैसी भावनाएं स्वयं ही समाप्त हो जाएंगी। अहम के विलीन होते ही मानव देवी संपदा को हस्तगत कर महामानव बन जाता है। वह सिर्फ अपना ही भला नहीं करता वरन् समाज भी उसका अनुकरण कर उसके पीछे चलता है। कर्म से अकर्म से श्रेष्ठ बताते हुए निष्काम कर्म का संपादन करना गीता की सार्वभौम विशेषता है। (©ज्योति)