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आधुनिक युग में निष्काम कर्म की अवधारणा

4 जनवरी 2023

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निष्काम कर्म के अनुसार भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं हे अर्जुन !तू कर्म कर !फल की इच्छा मत कर। कर्तव्य के लिए कर्म कर। आज के युग में भी गीता के निष्काम कर्म योग की   उपयोगिता निर्विवाद है। पहले राजनीति व  प्रशासनिक सेवाएं समाज सेवा का साधन हुआ करती थीं। मगर आज राजनीति का ध्रुवीकरण हो गया है ।भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता की राजनीति ने
समाज को जातीय, धार्मिक ,आर्थिक व सामाजिक आदि आधारों पर विभाजित कर ,मानव को जाति ,राज्य, प्रांत, देश धर्म आदि के आधार पर बांट दिया है। गीता का निष्काम कर्म हमें अपने कर्तव्य के लिए काम करने की प्रेरणा देता है। यदि हमारा वर्तमान नेतृत्व और सेवा संवर्ग ही निष्काम भाव से योजनाओं का निर्माण एवं कार्यान्वयन करें तो लोक सेवा का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं यदि हमारे देश का प्रत्येक मनुष्य निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर, संकीर्णता की दीवारों को गिरा कर निष्काम भाव से अपने कर्तव्य का पालन करें तो हमारी समस्याएं भ्रष्टाचार ,बेरोजगारी, गरीबी आदि स्वत ही समाप्त हो जाएंगी। मानव की विचारधारा व्यापक होगी। समाज में एकता समरसता का माहौल बनेगा। हमारा देश निरंतर उन्नति की ओर प्रगतिशील होगा। हम अपनी सामाजिक समस्याओं को मिलजुल कर दूर कर पाएंगे। गीता का निष्काम कर्म ना केवल हमें जीवन जीना सिखाता है वरन् हमें हमारे जीवन के अंतिम लक्ष्य को समझने, जानने की शक्ति देता है। निष्काम भाव से कर्म करने से हम कर्म में आसक्त नहीं होते तथा हमारे कर्म परमार्थ परायण हो जाते हैं । लोक संग्रह वालों लोको पकार के काम निष्काम भाव से ही संभव है। इस विश्व में जितने महापुरुष व  युगपुरुष हुए हैं उन्होंने निष्काम भाव से कर्मों का संपादन कर समाज व देश को नई ऊंचाइयो प्रदान की है।
 गीता का लोक संग्रह का  आदर्श प्रागैतिहासिक काल से ही राज्य के लोक कल्याणकारी स्वरूप की याद दिलाता है। गीता पुरुषोत्तम एवं   मुक्त आत्माओं  को लोक कल्याण हेतु प्रयासरत दिखाकर मानव मात्र को लोक कल्याण हेतु प्रेरित करती हैं। जब लोक कल्याण , लोकोपकार की भावना से मनुष्य निष्काम कर्म करेगा तो समाज में व्याप्त हिसा ,घृणा नफ़रत, द्वेष जैसी भावनाएं स्वयं ही समाप्त हो जाएंगी। अहम के विलीन होते ही मानव देवी संपदा को हस्तगत कर महामानव बन जाता है। वह सिर्फ अपना ही भला नहीं करता वरन् समाज भी उसका अनुकरण कर उसके पीछे चलता है। कर्म से अकर्म से श्रेष्ठ बताते हुए निष्काम कर्म का संपादन करना गीता की सार्वभौम विशेषता है।  (©ज्योति)
 Dr.Jyoti Maheshwari

Dr.Jyoti Maheshwari

गीता का निष्काम कर्म वास्तविक रूप से हमें जीवन का आनंद प्रदान करता है। व कर्तव्य के लिए कर्म करने की प्रेरणा देता है। यह वहआदर्श है जो मनुष्य की सभी समस्याओं का हल करने में सहायक है।

4 जनवरी 2023

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रचनाएँ
आज के युग में गीता दर्शन की प्रासंगिकता
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यह किताब गीता दर्शन पर आधारित है। आज के युग में गीता दर्शन की प्रासंगिकता एक ऐसा विषय है जो हमें सोचने पर मजबूर करता है की गीता केबल महाभारत के युद्ध क्षेत्र का वर्णन नहीं है, अर्जुन और कृष्ण के मध्य संवाद नहीं है बल्कि युद्ध क्षेत्र में अर्जुन के मन में जो भी प्रश्न उठ रहे हैं उनका उत्तर है। यह हमारे मन क्षेत्र मे उठने वाले विचारों द्वंद्वों का समाधान है। यह वह अमृतवाणी है, जिसे सुनने से, जिसे पढ़ने से मनुष्य को शांति, उत्साह, ऊर्जा मिलती है।
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आज के युग में गीता की प्रासंगिकता

28 दिसम्बर 2022
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मैं भगवत गीता से ऐसी शक्ति पाता हूं जो मुझे पर्वत पर उपदेश देने पर भी नहीं मिलती। जब निराशा मेरे सम्मुख उपस्थित होती है और नितांत एकाकी मैं प्रकाश की एक किरण भी नहीं देख पाता तब मैं भगवत गीता की और लौ

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आधुनिक युग में निष्काम कर्म की अवधारणा

4 जनवरी 2023
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निष्काम कर्म के अनुसार भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं हे अर्जुन !तू कर्म कर !फल की इच्छा मत कर। कर्तव्य के लिए कर्म कर। आज के युग में भी गीता के निष्काम कर्म योग की उपयोगिता निर्विवाद

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गीता में स्वधर्म की अवधारणा

6 जनवरी 2023
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गीता में स्वधर्म के महत्व को स्वीकार कर इसे प्रतिपादित किया गया है। गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है की चार वर्णों ब्राह्मण क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र की रचना गुण एवं कर्म के आधार पर मेरे द्वारा की गई है।

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गीता और धार्मिक सहिष्णुता की भावना

6 जनवरी 2023
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गीता द्वारा मानव समाज को दी गई धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा आज भी अनुकरणीय है। इसकी शिक्षा सार्वभौम है ,धर्म जाति ,संप्रदाय, देश काल ,परिस्थिति की सीमाओं से परे है। गीता को सभी उपासना पद्धतियों स

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गीता में कर्म ,ज्ञान एवं भक्ति का समन्वय

7 जनवरी 2023
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गीता का अमर संदेश सार्वकालिक और सार्वदेशिक है। इसमें कर्म ,ज्ञान और भक्ति का समन्वय किया गया है। भारतीय विचारधारा के निर्माण में इसकी महती भूमिका है। मनुष्य के हृदय में ज्ञान ,भक्ति ,कर्म का समन

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गीता का उदभव

7 जनवरी 2023
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भगवत गीता भारतीय विचारधारा का एक अत्यंत लोकप्रिय दार्शनिक, धार्मिक एवं नैतिक काव्य है ।यह महाभारत के भीष्म पर्व का एक भाग है ।गीता को सभी उपनिषदों का निचोड़ कहा जाता है ।गीता के इस ग्रंथ का उद्भव कुरु

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गीता में कर्म योग का अर्थ

8 जनवरी 2023
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कर्म योग गीता का प्रतिपाद्य प्रमुख विषय है ,इसमें निष्काम कर्म योग अर्थ पर हम विचार करेंगे। निष्काम शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के नि:+ काम शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है पर

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निष्काम कर्म योग में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति

9 जनवरी 2023
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निष्काम कर्म योग में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति के दो परस्पर विरोधी आदर्शों का समन्वय होता है। प्रवृत्ति का आदर्श कर्म का आदर्श है इस से प्रेरित व्यक्ति समाज में रहते हुए सुख प्राप्ति के लिए कर्म कर

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निष्काम कर्म का महत्व

10 जनवरी 2023
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यह गीता का निष्काम कर्म ही है जो आज के मानव को उसकी समस्याओं से ऊपर उठकर कर्तव्य के लिए कर्तव्य करने की प्रेरणा देता है। आधुनिक पाश्चात्य नैतिक दर्शन में प्रसिद्ध वैज्ञानिक दार्शनिक कांट ने भी गीता के

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