यह गीता का निष्काम कर्म ही है जो आज के मानव को उसकी समस्याओं से ऊपर उठकर कर्तव्य के लिए कर्तव्य करने की प्रेरणा देता है। आधुनिक पाश्चात्य नैतिक दर्शन में प्रसिद्ध वैज्ञानिक दार्शनिक कांट ने भी गीता के समान निष्काम कर्म का विवेचन किया है ,उनका सिद्धांत ,,"कर्तव्य के लिए कर्तव्य" के नाम से जाना जाता है। गीता निष्काम कर्म को मानव जीवन का आदर्श बनाने का निर्देश देती है। यह निष्काम कर्म हमें स्वार्थ में भावनाओं से ऊपर उठकर सही अर्थों में मानव बनने की प्रेरणा देता है ।इसी ने मानव को महामानव बना दिया है। याद कीजिए महर्षि दधीचि को, जिन्होंने अपने शरीर को स्वयं ही अस्त्र बनाने के लिए देवताओं को दान कर दिया एवं अमर हो गए। राजा शिवि ने कबूतर की रक्षार्थ अपने शरीर को काटने से भी गुरेज नहीं किया। महात्मा बुद्ध ने लोगों के दुख दूर करने के लिए बुद्धत्व का प्रचार सभी दिशाओं में किया। इतिहास ऐसे सहस्त्रों उदाहरणों से भरा हुआ है जहां निष्काम कर्म से मानव समाज की आध्यात्मिक उन्नति हुई। महात्मा गांधी ,अरविंद विवेकानंद ,स्वामी दयानंद जैसे महापुरुषों की एक लंबी श्रृंखला है जिन्होंने देश ,समाज व लोकहित के लिए कर्म किया और अपना जीवन होम कर दिया। आज फिर मदर टेरेसा के निस्वार्थ प्रेम व समर्पण को कौन नहीं जानता? दुनिया की अनेक समस्याओं का हल इसी निष्काम कर्म में छुपा हुआ है। आज भी अनगिनत लोग नीव की ईट होकर इस समाज व देश को आगे बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील हैं ।एक वैज्ञानिक वर्षों तक कठिन मेहनत करके ही कोई नया अनुसंधान कर पाता है। एक अध्यापक अपने अध्यापन से ही एक नई पीढ़ी तैयार कर पाता है ।यदि यह निष्काम कर्म हमारे जीवन में उतर जाए तो मनुष्य की सारी समस्याओं का समाधान स्वत: ही हो जाएगा ।यह धरा फिर से स्वर्ग बन जाएगी । ऊंच-नीच ,छोटा, बड़ा ,सत्य ,असत्य मेरा, पराया, गरीब, अमीर जैसे शब्द स्वयं ही बौने हो जाएंगे। यही गीता के निष्काम कर्म की शाश्वत गाथा है जो धरती को गुंजायमान कर लोगों के दिलों से नफरत, राग, द्वेष ,क्रोध, हिंसा जैसी बुराइयों को दूर करके उन्हें निस्वार्थ, निष्काम प्रेम से सारोबार कर देगी।
(© ज्योति)