shabd-logo

गीता में स्वधर्म की अवधारणा

6 जनवरी 2023

42 बार देखा गया 42
गीता में स्वधर्म के महत्व को स्वीकार कर इसे प्रतिपादित किया गया है। गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है की चार वर्णों ब्राह्मण क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र की रचना गुण एवं कर्म के आधार पर मेरे द्वारा की गई है। इन चार वर्णो की व्यवस्था जन्मजात ना होकर गुण एवं कर्मों के आधार पर है। सभी प्राणी प्रकृति से उत्पन्न तीन गुणों सत्त्व ,रज एवं तमोगुण से बंधे हुए हैं। सत्व गुण की प्रधानता वाले ब्राह्मण, सत्त्व व रजोगुण के संयोग की अधिकता वाले क्षत्रिय वर्ण, तथा तमोगुण व रजोगुण की प्रधानता वाले  वैश्य वर्ण है। रजोगुण मिश्रित तमोगुण की अधिकता वाले शूद्र कहलाए। प्रत्येक वर्ण के कर्म अलग-अलग है तथा इसका आधार स्वभाव जन्य गुण है। गीता ने अपने अपने वर्णों के संभावित कर्मों को ही स्वधर्म की संज्ञा दी है। स्वभाव तथा गुण के अनुरूप निर्धारित विशिष्ट कर्म ही स्वधर्म है। प्रत्येक वर्ण का  अपना निश्चित  कर्म स्वधर्म है ,जिसे कर्तव्य समझकर संपादित किया जाना चाहिए। किसी भी दृष्टिकोण से अपने निर्धारित कर्म का परित्याग एवं अन्य के धर्म एवं कर्म का संपादन उचित नहीं है। स्वधर्म की यह विशेषता है कि यह कर्मों की समानता को स्वीकार करता है जिसके अनुसार सभी व्यक्तियों के कर्म समान है। यह  सामाजिक व्यवस्था और संरचना को अक्षुण्ण बनाए रखने में सहायता करता है व व्यक्ति व समाज के बीच सेतु की तरह संबंध बनाए रखता है। स्वधर्म के पालन से ही समाज में शांति की स्थापना व सौहार्द का वातावरण बनता है तथा प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वधर्म का पालन करते हुए अपना चारित्रिक , वैयक्तिक, सामाजिक विकास करता है। स्वधर्म के पालन से व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है ,अहम समाप्त हो जाता है तथा यह भावना गीता के निष्काम कर्म को  अक्षुण्ण बनाए रखती है।
आधुनिक युग में गुण एवं कर्म के आधार पर किया गया यह विभाजन जन्मजात बन गया। ब्राह्मण क्षत्रिय श्रेष्ठ व वैश्य शूद्र हीन बन गये व उनका शोषण होने लगा। आज भी हमारा समाज इन अंधविश्वासों, कुरीतियों ,ऊंच-नीच की भावनाओं से भरा पड़ा है ।मनोविज्ञान कहता है हर व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग है ,उसके गुण ,कर्म ,स्वभाव के आधार पर शिक्षा देनी चाहिए ।लेकिन मनुष्य के अहम ने किसी को जन्म से श्रेष्ठ बना दिया किसी को हीन? यह ईश्वर की बनाई व्यवस्था का अपमान है, उसने सभी को समान बनाया है। हर व्यक्ति के कार्य का चाहे छोटा हो या बड़ा अपना महत्व है ।यह भेदभाव जो हमारे मन के अंदर बसता है, यह श्रेष्ठता की दीवारें, यह अमीरी का दंभ सब समाप्त हो जाएगा जब हम निष्काम भाव से अपने कर्म को स्वधर्म मानकर निष्ठा पूर्वक अपने काम करेंगे। फिर समाज में एकता व समरसता का वातावरण होगा। ना श्रेष्ठता व हीनता की लड़ाई होगी। ना कोई किसी का शोषण करेगा ना ही कोई शोषित होगा। (© ज्योति)
 Dr.Jyoti Maheshwari

Dr.Jyoti Maheshwari

गीता के स्वधर्म की आज के संदर्भ में तुलना की गई। गीता का स्वधर्म व्यक्ति को सही मायनों में अपने गुण ,कर्म, स्वभाव के आधार पर अपना कार्य चुनने की अनुमति देता है। क्योंकि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग है।

6 जनवरी 2023

9
रचनाएँ
आज के युग में गीता दर्शन की प्रासंगिकता
0.0
यह किताब गीता दर्शन पर आधारित है। आज के युग में गीता दर्शन की प्रासंगिकता एक ऐसा विषय है जो हमें सोचने पर मजबूर करता है की गीता केबल महाभारत के युद्ध क्षेत्र का वर्णन नहीं है, अर्जुन और कृष्ण के मध्य संवाद नहीं है बल्कि युद्ध क्षेत्र में अर्जुन के मन में जो भी प्रश्न उठ रहे हैं उनका उत्तर है। यह हमारे मन क्षेत्र मे उठने वाले विचारों द्वंद्वों का समाधान है। यह वह अमृतवाणी है, जिसे सुनने से, जिसे पढ़ने से मनुष्य को शांति, उत्साह, ऊर्जा मिलती है।
1

आज के युग में गीता की प्रासंगिकता

28 दिसम्बर 2022
1
0
0

मैं भगवत गीता से ऐसी शक्ति पाता हूं जो मुझे पर्वत पर उपदेश देने पर भी नहीं मिलती। जब निराशा मेरे सम्मुख उपस्थित होती है और नितांत एकाकी मैं प्रकाश की एक किरण भी नहीं देख पाता तब मैं भगवत गीता की और लौ

2

आधुनिक युग में निष्काम कर्म की अवधारणा

4 जनवरी 2023
0
0
1

निष्काम कर्म के अनुसार भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं हे अर्जुन !तू कर्म कर !फल की इच्छा मत कर। कर्तव्य के लिए कर्म कर। आज के युग में भी गीता के निष्काम कर्म योग की उपयोगिता निर्विवाद

3

गीता में स्वधर्म की अवधारणा

6 जनवरी 2023
0
0
1

गीता में स्वधर्म के महत्व को स्वीकार कर इसे प्रतिपादित किया गया है। गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है की चार वर्णों ब्राह्मण क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र की रचना गुण एवं कर्म के आधार पर मेरे द्वारा की गई है।

4

गीता और धार्मिक सहिष्णुता की भावना

6 जनवरी 2023
0
0
0

गीता द्वारा मानव समाज को दी गई धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा आज भी अनुकरणीय है। इसकी शिक्षा सार्वभौम है ,धर्म जाति ,संप्रदाय, देश काल ,परिस्थिति की सीमाओं से परे है। गीता को सभी उपासना पद्धतियों स

5

गीता में कर्म ,ज्ञान एवं भक्ति का समन्वय

7 जनवरी 2023
1
0
1

गीता का अमर संदेश सार्वकालिक और सार्वदेशिक है। इसमें कर्म ,ज्ञान और भक्ति का समन्वय किया गया है। भारतीय विचारधारा के निर्माण में इसकी महती भूमिका है। मनुष्य के हृदय में ज्ञान ,भक्ति ,कर्म का समन

6

गीता का उदभव

7 जनवरी 2023
0
0
0

भगवत गीता भारतीय विचारधारा का एक अत्यंत लोकप्रिय दार्शनिक, धार्मिक एवं नैतिक काव्य है ।यह महाभारत के भीष्म पर्व का एक भाग है ।गीता को सभी उपनिषदों का निचोड़ कहा जाता है ।गीता के इस ग्रंथ का उद्भव कुरु

7

गीता में कर्म योग का अर्थ

8 जनवरी 2023
0
0
1

कर्म योग गीता का प्रतिपाद्य प्रमुख विषय है ,इसमें निष्काम कर्म योग अर्थ पर हम विचार करेंगे। निष्काम शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के नि:+ काम शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है पर

8

निष्काम कर्म योग में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति

9 जनवरी 2023
0
0
0

निष्काम कर्म योग में प्रवृत्ति एवं निवृत्ति के दो परस्पर विरोधी आदर्शों का समन्वय होता है। प्रवृत्ति का आदर्श कर्म का आदर्श है इस से प्रेरित व्यक्ति समाज में रहते हुए सुख प्राप्ति के लिए कर्म कर

9

निष्काम कर्म का महत्व

10 जनवरी 2023
0
0
1

यह गीता का निष्काम कर्म ही है जो आज के मानव को उसकी समस्याओं से ऊपर उठकर कर्तव्य के लिए कर्तव्य करने की प्रेरणा देता है। आधुनिक पाश्चात्य नैतिक दर्शन में प्रसिद्ध वैज्ञानिक दार्शनिक कांट ने भी गीता के

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए