गीता द्वारा मानव समाज को दी गई धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा आज भी अनुकरणीय है। इसकी शिक्षा सार्वभौम है ,धर्म जाति ,संप्रदाय, देश काल ,परिस्थिति की सीमाओं से परे है। गीता को सभी उपासना पद्धतियों से सहानुभूति है। श्रीकृष्णा स्वयं घोषणा करते हैं जो भक्त जिस देवता को श्रद्धा से पूजना चाहता है मैं उसकी श्रद्धा को उसी में दृढ करता हूं और वह उसी से अपने इच्छित भोगों को प्राप्त करता है। वे पुनः घोषणा करते हैं जो श्रद्धा से युक्त होकर अन्य देवताओं को पूजते हैं वे भी मुझे ही पूजते हैं। इस प्रकार आज के सामाजिक एवं राजनीतिक परिवेश में गीता की धार्मिक सहिष्णुता ,पंथ संप्रदाय निरपेक्षता का दर्शन और भी प्रासंगिक है ,क्योंकि आज के युग में हम ना जाने कितने पंथो कितने धर्म में अपने आपको बांटे हुए हैं। आज हम धर्म, जाति, मजहब, ऊंच-नीच की भावनाओं को अपने में भरकर नफरत, हिंसा, आतंकवाद
की समस्याओं से भरे हैं। इस्लामी आतंकवाद, लिट्टे, खालि स्तान जैसी समस्याएं धार्मिक असहिष्णुता की देन है। गीता का दृष्टिकोण ही हमें विश्व बंधुत्व, मानव मूल्य की सच्ची शिक्षा देता है। व आतंकवाद जैसी समस्याओं का समाधान देता है। गीता मनुष्य की शक्तियों के जागरण की अमृतवाणी है। यह ज्ञान, भक्ति ,कर्म के समन्वय पर जोर देती है आधुनिक मनुष्य को उसके जीवन समस्याओं का समाधान देती है उसकी अंतः प्रेरणा को जागृत करती है। तभी तो एनी बेसेंट कह उठी यह संगीत अपनी जन्मभूमि में ही नहीं बल्कि सभी भूमियों पर गया है और उसने प्रत्येक देश में भावुक हृदय में वही प्रतिध्वनि जगाई है ।आज तक गीता पर जितनी टिकाए लिखी गई शायद किसी ही अन्य ग्रंथ पर लिखी गई हो। इसका प्रत्येक श्लोक व्यापक अर्थ रखता है, मानवीय अंतःकरण को जगाने की सामर्थ्य रखता है। विलियम ब्रान हंबोल्ट ने कहा है गीता किसी ज्ञात भाषा में उपस्थित गीतों में संभवत सबसे अधिक सुंदर और एकमात्र दार्शनिक गीत है। गीता वीरों का ओज है मानव के लिए वह संजीवनी है ,जो उसके जीवन की मार्गदर्शक है, उसकी चेतना है ,उसकी प्रेरणा है। धार्मिक सहिष्णुता का ऐसा उदाहरण कहीं मिलना असंभव है। गीता की धार्मिक सहिष्णुता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पहले थी।
(© ज्योति)