तू कविता हैं मुझ बंजारे की
तू कविता हैं मुझ बंजारे की, सुबह की लाली, शाम के अँधियारे की, वक्त के कोल्हू पे रखी, ईख के गठियारे की, हर पल में बनी स्थिर, नदियों के किनारे की, सूरज की, धरती की, टमटमाते चाँद सितारे की, हान तू कविता है मुझ बंजारे की। तू कविता हैं मुझ बंजारे की, रुके हुए साज पर, चुप्पी के इशारे की, इस रंगीन समा में