सुबह की लाली, शाम के अँधियारे की,
वक्त के कोल्हू पे रखी, ईख के गठियारे की,
हर पल में बनी स्थिर, नदियों के किनारे की,
सूरज की, धरती की, टमटमाते चाँद सितारे की,
हान तू कविता है मुझ बंजारे की।
तू कविता हैं मुझ बंजारे की,
रुके हुए साज पर, चुप्पी के इशारे की,
इस रंगीन समा में, खुशनुमा नजारे की,
भटके हुए मुसाफिर को सराय के सहारे की,
ईश्वर की, अल्लहा की, हर दीन-दुखियारे की,
हान तू कविता है मुझ बंजारे की।
तू कविता हैं मुझ बंजारे की,
विष्टा पात्र में दबे, मेहतरानी के जीवन सारे की,
रूढ़ि सोच में मरती, इंसानियत मतिमारे की,
बदले वक्त के बदले मनो पर एक आखरी उजियारे की,
है ये तेरी, ये मेरी, है यह सब बोझ ढोह रहे कहारे कि,
हान तू कविता है मुझ बंजारे की।
हान तू कविता है मुझ बंजारे की।