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।।।आखिर क्यों।।infact why hindi poem

4 सितम्बर 2022

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सोच-समझ कर रहना भैया आखिर क्यों उलझना है।
जीवन है क्षण भंगुर फिर शाश्वत किसे यहाँ रहना है।।
विस्तार वादी नीति पर जगत तनय को कुछ कहना है।
पंच तत्वों की काया को उन्हीं पंच तत्वों में मिलना है।।1।

काया कंचन मिट्टी को आखिर क्यों इतना मान दिया।
पग-पग पर निज हित रह आखिर क्यों तू जान दिया।।
जनमेजय के नाग यज्ञ ने किसका है कल्याण किया।
शान्ति न माना जिसने उसने मानव को तबाह किया।।2।।

आखिर क्यों दिन-रात सूर्य-चन्द्र निज पथ सजे रहें।
दे उपहार हमें सुख-शांति का कर्तव्य पथ पर बने रहें।।
नाकों चना चबाने शांति बनाने कर्म पथ पर अड़े रहें।
अपनी संवेदना को जगा हम शांति हेतु तो खड़े रहें।।3।।

आखिर क्यों हर काल काल शिर पर मंडराता है।
श्वाशों का आना-जाना जीवन राह चलना बताता है।।
जीवन हैं तो जीना ही पड़ेगा जीवन राग सुनाता है।
नित कर्म करो आगे बढ़ो अद्भुत मन्त्र सिखाता है।।4।।

आखिर क्यों मानव मानव ही नहीं रह पाता है।
मद मोह मत्सर मार मानव मन मही मर जाता है।।
सुबह से शाम तक एक सा नित काम पड़ जाता है।
अपनों से परायों सा परायों से अपने सा हो जाता है।।5।।

आखिर क्यों कामना हीन भूत भूत बन जाता है।
जन्म कर्म के बन्धन से जन मुक्त नहीं हो पाता है।।
पी कर विष-वारूणी कदम नहीं भू पर रख पाता है।
सत्ता मद में चूर नर मानवता ताक पर रख देता है।।6।।

आखिर क्यों सब पाठ नर दूसरों को ही पढ़ाता है।
निज पर बात आते ही सब पाठ स्वयं भूल जाता है।। 
प्राणी प्रकृति प्रकृति संग भी खेल खेल जाती है।
दया माया ममता मधुरिमा मन मसोज रह जाती है।।7।।

आखिर क्यों हर जीव-जन्तु हमकों ज्ञान सिखाते हैं।
तोता-मैना कागला हंस बगुले कुत्ते पाठ पढ़ाते हैं।।
औरों की तो बात क्या बैल-गधे सिख दे जाते हैं।
कारण सच कहूँ जब मानव मानव नहीं हो पाते हैं।।8।।

 




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रचनाएँ
कुर्सी कंचन कामिनी"मुक्तक संग्रह"
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मुक्तक-संसार के अटूट पथ पर कुर्सी कंचन कामिनी"मुक्तक संग्रह" एक अदना से कंकण के समान पथ समृद्धि में अपना योगदान दे और समस्त मानव इसके आनन्द-सागर से कुछ संग्रहित कर सके इस हेतु एक छोटा सा प्रयास आपकी सेवा में। आपका गिरिजा शंकर तिवारी "शाण्डिल्य"
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एकादश मुक्तक

3 सितम्बर 2022
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कुर्सी कंचन कामिनी(कुर्सी, कंचन, कामिनी)

4 सितम्बर 2022
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शिक्षा education hindi poem

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।।सिक्का।।coin hindi poem

4 सितम्बर 2022
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आस्तिन का साँप। serpent

4 सितम्बर 2022
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अब मैं भी गया हूँ भाँप।होते है आस्तिन में साँप।।मीरजाफ़र जयचंद तब।अपना बन पराये अब।।पराये हो जायें अपने जब।अपने हो जायें पराये कब।।सर्पेन्ट मर्चेन्ट का कमिटमेंट।अदृश्य है शॉपिंग सेटेलमेंट।।हर शाख

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आओ हम विचारे । । come we think hindi poem

4 सितम्बर 2022
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आओ हम विचारे कुछ आज ,सूर्य-चन्द्र सा करते काज। दिन-रात सिखे-सिखाये साज ,देश बनाये जग सिर ताज।। १।। श्री की चाह जह राह आज ,तह येन-केन मन-बंचक राज। छोड़ जग मर्यादा मा

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।।।आखिर क्यों।।infact why hindi poem

4 सितम्बर 2022
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सोच-समझ कर रहना भैया आखिर क्यों उलझना है।जीवन है क्षण भंगुर फिर शाश्वत किसे यहाँ रहना है।।विस्तार वादी नीति पर जगत तनय को कुछ कहना है।पंच तत्वों की काया को उन्हीं पंच तत्वों में मिलना है।।1।काया कंचन

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।। यह हकीकत है।।it is true hindi poem

4 सितम्बर 2022
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यह हकीकत है माँ से इंसा देव दानव मानव बनता है। खयाली पुलाव से नहीं कर्म से नर यहाँ आगे बढ़ता है।। ज्ञानियों का भाल-सूर्य हर हाल सुबरन सा चमकता है। मूर्ख-मेढ़क सत्य-रज्जू को असद-सर्प ही समझता है।।1।।

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4 सितम्बर 2022
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यहाँ-वहाँ हर गली-गली में हो रहा है काँव-काँव।सत्ता के भूखे भेड़िये हैं जाल फैलाये ठाँव-ठाँव।।रात-दिन कौवे कब कहाँ क्यों हैं शोर मचाते।निज के लिए हैं हर कागा अद्भुत भीड़ जुटाते।।1।।काँव-काँव ऐसा स्वर है

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