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।।काँव-काँव।। crowing hindi poem

4 सितम्बर 2022

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यहाँ-वहाँ हर गली-गली में हो रहा है काँव-काँव।
सत्ता के भूखे भेड़िये हैं जाल फैलाये ठाँव-ठाँव।।
रात-दिन कौवे कब कहाँ क्यों हैं शोर मचाते।
निज के लिए हैं हर कागा अद्भुत भीड़ जुटाते।।1।।

काँव-काँव ऐसा स्वर है जो बरबस सुन जाता।
सामान्य रूप की चर्चा में नहीं किसी को भाता।।
तेरी-मेरी में उलझ-सुलझ मानव मन पछताता।
दानव-मन मन लड्डू ले है काँव-काँव करवाता।।2।।

दूजे के सुख-शान्ति से दुःखी कौन है होता।
दूजे के दुःख-दावानल से सुखी कौन है होता।।
दूजे के नित कच कच से चैन कौन है लेता।
काँव-काँव करता वह कभी नहीं चैन से सोता।।3।।

काँव-काँव कर अस्त-व्यस्त पाते मन में शान्ति।
यहाँ जहां में बहम फैला फैलाते अद्भुत भ्रान्ति।।
निज स्वार्थ सिद्धि हेतु तैयार करने को क्रान्ति।
नर कौवे शान्ति गौरैये के लिए हैं व्यथा भाँति।।4।।

काँव-काँव कर जीवन-ज्योति बुझाने आतुर रहते।
अपनों से सम्बंध नहीं पर पर से संबंध न रखते।।
निष्ठावान कहाँ जहां में ऐसे कुत्सित को करते।
काँव-काँव से दूर यहाँ तो सद मानव ही रहते।।5।।

 
दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

यहाँ-वहाँ हर गली-गली में हो रहा है काँव-काँव। सत्ता के भूखे भेड़िये हैं जाल फैलाये ठाँव-ठाँव।। इन्हीं लाइनों में सारा तत्व है

29 जुलाई 2023

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रचनाएँ
कुर्सी कंचन कामिनी"मुक्तक संग्रह"
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मुक्तक-संसार के अटूट पथ पर कुर्सी कंचन कामिनी"मुक्तक संग्रह" एक अदना से कंकण के समान पथ समृद्धि में अपना योगदान दे और समस्त मानव इसके आनन्द-सागर से कुछ संग्रहित कर सके इस हेतु एक छोटा सा प्रयास आपकी सेवा में। आपका गिरिजा शंकर तिवारी "शाण्डिल्य"
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एकादश मुक्तक

3 सितम्बर 2022
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वाद की है झङी लगी, जात पात का मेल!विकृतियां अब समाज की, हो रही वीष बेल!!१!!तुलसी के सात काण्ड, अब तो काण्ड अनन्त!कल्याण नही अब देश का, तेरे बिन भगवन्त!!२!!नहीं पता हैं काण्ड का, चीनी बिजली फोन!हर्षद म

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कुर्सी कंचन कामिनी(कुर्सी, कंचन, कामिनी)

4 सितम्बर 2022
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कुर्सी कंचन कामिनी जन करे वाह वाह ।ज्यो-ज्यो ये सब पास हो, टिकती नही निगाह।।कुर्सी की यह लालसा ललक बढाऍ जोस ।कट गया उस समाज से, जिन पर किया भरोस ।।कन्चन से परेशानी ,रहे ना सदा पास ।देता सुख-दुुःख सब य

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शिक्षा education hindi poem

4 सितम्बर 2022
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रोजगार नाग दंस से है अर्धविछिप्त समाज !गिर रहा प्रतिभा का सम्मान हर जगह आज !!राजनीति कूटनीति से ये लेते निज रोटी सेक !नित नवीन विकल्पों को देते बार-बार फेक !!ये मद मस्त आतुर है करने को समाज पस्त !जाति

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।।सिक्का।।coin hindi poem

4 सितम्बर 2022
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श्री गजानन पद पंकज, वंदन बारंबार।मिटाये आपदा सहस सूर्य ज्यो अंधकार।।1।।इष्ट देव हनुमान पद, सतत सरल मम नमन।हर हर जन का दुःख सद, कै सुवास जग चमन।।2।। कृष्णम वंदे जगत गुरुं,जगत सुत हित रत नित।कंस मु

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आस्तिन का साँप। serpent

4 सितम्बर 2022
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अब मैं भी गया हूँ भाँप।होते है आस्तिन में साँप।।मीरजाफ़र जयचंद तब।अपना बन पराये अब।।पराये हो जायें अपने जब।अपने हो जायें पराये कब।।सर्पेन्ट मर्चेन्ट का कमिटमेंट।अदृश्य है शॉपिंग सेटेलमेंट।।हर शाख

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आओ हम विचारे । । come we think hindi poem

4 सितम्बर 2022
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आओ हम विचारे कुछ आज ,सूर्य-चन्द्र सा करते काज। दिन-रात सिखे-सिखाये साज ,देश बनाये जग सिर ताज।। १।। श्री की चाह जह राह आज ,तह येन-केन मन-बंचक राज। छोड़ जग मर्यादा मा

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।।।आखिर क्यों।।infact why hindi poem

4 सितम्बर 2022
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सोच-समझ कर रहना भैया आखिर क्यों उलझना है।जीवन है क्षण भंगुर फिर शाश्वत किसे यहाँ रहना है।।विस्तार वादी नीति पर जगत तनय को कुछ कहना है।पंच तत्वों की काया को उन्हीं पंच तत्वों में मिलना है।।1।काया कंचन

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।। यह हकीकत है।।it is true hindi poem

4 सितम्बर 2022
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यह हकीकत है माँ से इंसा देव दानव मानव बनता है। खयाली पुलाव से नहीं कर्म से नर यहाँ आगे बढ़ता है।। ज्ञानियों का भाल-सूर्य हर हाल सुबरन सा चमकता है। मूर्ख-मेढ़क सत्य-रज्जू को असद-सर्प ही समझता है।।1।।

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।।काँव-काँव।। crowing hindi poem

4 सितम्बर 2022
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यहाँ-वहाँ हर गली-गली में हो रहा है काँव-काँव।सत्ता के भूखे भेड़िये हैं जाल फैलाये ठाँव-ठाँव।।रात-दिन कौवे कब कहाँ क्यों हैं शोर मचाते।निज के लिए हैं हर कागा अद्भुत भीड़ जुटाते।।1।।काँव-काँव ऐसा स्वर है

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