आंखों में रौशनी की ये गुलनार अज़ब है
हो किसकी साये में की ये बहार अज़ब है
किसी की हुस्न पे की क्यों आये ये क़हर
ख़ुद की क़ानून से की ये संसार अज़ब है
तेरे हर इक सवालों का करूं मैं अज़बर
आज़ तेरी मुलाक़ात की ये क़रार अज़ब है
क्यों तुने फेर ली की अपनी ये क़ातिलाना नज़र
तेरे ज़मीर का करूं मैं ज़ाकिर की ये असर अज़ब है
मूल्क पर तेरे बलिदान से हम ना हैं बेखबर
तेरे अश्कों की ये सैलाब अज़ब हैं।