★【आर्शिवाद】★
सुधीर ने ,ईरान रहने वाले,अपने छोटे भाई,"अधीर" ,को फोन लगाया और बताया कि _" माँ की तबियत काफी खराब चल रही है,आकर देख जाओ।"वैसे भी तुम दस साल से इण्डिया नहीं आए हो।
अधीर ने ,आने में असमर्थरता जताते हुए कहा_ "अभी पत्नी कि तबियत ठीक नहीं चल रही है,आना मुश्किल होगा, आगे देखता हूँ।''
पाँच दिन बाद,सुधीर ने अधीर को बताया _"अभी अभी माँ का देहांत हो गया है।",क्या अंतिम दर्शन के लिए आ पाओगे?
अधीर ने फिर असमर्थरता दिखाते हुए कहा -"इतनी जल्दी तो आना सम्भव नहीं हो पायेगा,क्योंकि मेरी तबियत ठीक नहीं चल रही है।" आप सब रीतियां पूरी कर दें।फिर आता हूं।
माँ को गए एक महीना बीत गया,सुधीर ने अधीर को कोन पर बताया कि -"माँ इस कोठी का आधा हिस्सा तुम्हारे नाम कर गई हैं,क्या करोगे ,रखोगे या बेचोगे?
यह सुनते ही अधीर बोला-"अगले हफ्ते आता हूँ,फिर देखता हूँ।
शहर वे सबसे मंहगे और शानदार इलाके में होने की वजह से, कोठी की कीमत पाँच करोङ लगी,यह जानकर अधीर की खुशी का ठिकाना न रहा।उसने अपना हिस्सा बेचने का मन बना लिया।
अब पन्द्रह दिनों के लिए इण्डिया आकर ,अघीर ने सारी कानूनी कार्यवाही पूरी की,वंटवारे की दीवार घर के बीचों बीच खिंच गई और बेचने के लिए प्रापटी डीलर से सम्पर्क किया गया।
लगभग हर दूसरे महीने आकर,अघीर ग्राहकों से बात करता और मुनासिव सोदा न होने पर ,वापस चला जाता।करीब दस महीने बाद,सौदा हुआ और ढ़ाई करोड़ की रकम उसके हाथ आई।जिसमें से एक पाई भी उसने अपने भाई और उनके परिवार पर खर्च करके व्यर्थ नहीं की,पूरी की पूरी रकम माँ के आर्शिवाद के साथ लेकर ईरान चला गया और फिर लौटकर इण्डिया ,कभी नहीं आया।
रूपाली सिंह
बरेली।