एक वक्त था जब ---------
कुटुम्ब ,घर और गांव के साथ गाड़ी नहीं चलती थी।
ना होता तीज त्यौहार ना कोई उत्सव की छटा सजती थी।
आज वक्त ने करवट ली तो इन्सान को बदल दिया।
हर आदमी ने अकेलेपन का जीवन अपना लिया।
एक वक्त था जब-----------
हर दिल में रिश्ते की अहमियत होती थी।
बड़ों की इज्जत हर दिल में होती थी।
इज्जत के आगे फीकी थी चमक हीरा और मोती की।
अमूल्य अहमियत थी मां-बाप, भाई-बहिन,दादा-दादी की।
एक वक्त था जब -------------
सच्चाई के बीज नहीं विशाल पेड़ उगे हुए थे।
अपने-पराये पर विश्वास के साथ होते थे।
अंदर से दिल कांपने की एक अनोखी दुनिया थी।
पाप और पुण्य में फर्क करने की एक सच्ची गुनिया थी।
एक वक्त था जब ------------------
होली और दीवाली पर भाईचारे और अपनेपन की बरसात होती थी।
हर समाज में मिल बांटकर खाने की खुशियां असीम होती थी।
श्वान सम लड़ने की परंपरा लुप्त थी।
सद्गुणों की जागृति थी दुर्गुणों की दुनिया लुप्त थी।
एक वक्त था जब-------------------
आत्मविश्वास होता था और सफलता कदम चूमती थी।
विचलित नहीं होती मंजिलें मानव की हेल्प सदा मिलती थी।
आज कदम खींचकर गिराने के रिवाज चलने लगा है।
आज अपनो ने अपनों को ही ठगा है।
एक वक्त था जब---------------
पर्यावरण की शुद्ध हवायें श्वसन बनकर अंदर जाती।
शुद्ध संस्कृति, शुद्ध संस्कार की ज्ञान विद्या हमें मिलती।
आज के वक्त ने अशुद्धता का ताज पहन लिया।
अस्त हो गया सत्य का सूर्य बेईमानी का चोला पहन लिया है।
एक वक्त था जब----------------------------
वाणी की मधुरता पानी की मधुरता मन को गुलाम बना देती।
शांति की बहती गंगा जीवन को शांत बना देती।
प्रेम में शक्ति होती थी बलात्कार और विश्वासघात शून्य थे।
लोगों के जेब और गले काटना धरती पर नगण्य थे।
एक वक्त था जब------------------------
सियासत जनता के लिए चलती थी सत्य और इंसाफ पर।
होती थी जनता के हितों की बातें हर ईमान के दरबार पर।
चरित्रहीन अफसरशाही में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी लुप्त थी।
हीरा पर उंगली नहीं उठती हर हीरा की परख सत्य और गुप्त थी।।
एक वक्त था जब------------------------------
वृद्ध की चाहत होती थी सेवा और आशीर्वाद के लिए।
मां बाप की आंखों ना होते आंसू बहिष्कार के लिए।
सिलसिला समर्पण का निष्ठा के साथ चलता था।
हर गलती को माफी भावनाओं से दिल पिघलता था।।
एक वक्त था जब-------------------------
सुख-दुख का साथी बनकर सदा साथ निभाते थे।
वचन की करते पालना मुंह से निकली जुबां निभाते थे।
बैठते थे एक छत के नीचे प्रेम की गंगा बहती थी।
रिति-रिवाज और पंरपरा मुंह से सच्चाई कहती थी।।
एक वक्त था जब----------------------
विश्व गुरु था देश सोने की चिड़िया कहलाता था।
हिमालय का सिर ऊंचा विश्व का मान बढाता था।
निर्मल गंगा लोगों के दिलों में और बाहर से बहती थी।
प्रकृति की हर छटा जीवन को वरदान देती थी।।
हर आदमी ने अकेलेपन का जीवन अपना लिया।
एक वक्त था जब-----------
हर दिल में रिश्ते की अहमियत होती थी।
बड़ों की इज्जत हर दिल में होती थी।
इज्जत के आगे फीकी थी चमक हीरा और मोती की।
अमूल्य अहमियत थी मां-बाप, भाई-बहिन,दादा-दादी की।
एक वक्त था जब -------------
सच्चाई के बीज नहीं विशाल पेड़ उगे हुए थे।
अपने-पराये पर विश्वास के साथ होते थे।
अंदर से दिल कांपने की एक अनोखी दुनिया थी।
पाप और पुण्य में फर्क करने की एक सच्ची गुनिया थी।
एक वक्त था जब ------------------
होली और दीवाली पर भाईचारे और अपनेपन की बरसात होती थी।
हर समाज में मिल बांटकर खाने की खुशियां असीम होती थी।
श्वान सम लड़ने की परंपरा लुप्त थी।
सद्गुणों की जागृति थी दुर्गुणों की दुनिया लुप्त थी।
एक वक्त था जब-------------------
आत्मविश्वास होता था और सफलता कदम चूमती थी।
विचलित नहीं होती मंजिलें मानव की हेल्प सदा मिलती थी।
आज कदम खींचकर गिराने के रिवाज चलने लगा है।
आज अपनो ने अपनों को ही ठगा है।
एक वक्त था जब---------------
पर्यावरण की शुद्ध हवायें श्वसन बनकर अंदर जाती।
शुद्ध संस्कृति, शुद्ध संस्कार की ज्ञान विद्या हमें मिलती।
आज के वक्त ने अशुद्धता का ताज पहन लिया।
अस्त हो गया सत्य का सूर्य बेईमानी का चोला पहन लिया है।
एक वक्त था जब----------------------------
वाणी की मधुरता पानी की मधुरता मन को गुलाम बना देती।
शांति की बहती गंगा जीवन को शांत बना देती।
प्रेम में शक्ति होती थी बलात्कार और विश्वासघात शून्य थे।
लोगों के जेब और गले काटना धरती पर नगण्य थे।
एक वक्त था जब------------------------
सियासत जनता के लिए चलती थी सत्य और इंसाफ पर।
होती थी जनता के हितों की बातें हर ईमान के दरबार पर।
चरित्रहीन अफसरशाही में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी लुप्त थी।
हीरा पर उंगली नहीं उठती हर हीरा की परख सत्य और गुप्त थी।।
एक वक्त था जब------------------------------
वृद्ध की चाहत होती थी सेवा और आशीर्वाद के लिए।
मां बाप की आंखों ना होते आंसू बहिष्कार के लिए।
सिलसिला समर्पण का निष्ठा के साथ चलता था।
हर गलती को माफी भावनाओं से दिल पिघलता था।।
एक वक्त था जब-------------------------
सुख-दुख का साथी बनकर सदा साथ निभाते थे।
वचन की करते पालना मुंह से निकली जुबां निभाते थे।
बैठते थे एक छत के नीचे प्रेम की गंगा बहती थी।
रिति-रिवाज और पंरपरा मुंह से सच्चाई कहती थी।।
एक वक्त था जब----------------------
विश्व गुरु था देश सोने की चिड़िया कहलाता था।
हिमालय का सिर ऊंचा विश्व का मान बढाता था।
निर्मल गंगा लोगों के दिलों में और बाहर से बहती थी।
प्रकृति की हर छटा जीवन को वरदान देती थी।।