सुहाग की रक्षा के लिए निभाती में हर व्रत ।
मेरे सुहाग रहे बाधाओं से दूर अनवरत।
अपनी कला , कौशल , बुद्धिमता से निभाऊंगी।
कभी आंच ना आने दूंगी ना कभी उन्हें सताऊंगी।
हमारी रक्षा , सुरक्षा और खुशियों के लिए करते जो समर्पण।
उनके लिए भी कर दूं मैं तन मन अपना अर्पण।
हर कठिन राह पर उनका साथ निभाऊंगी।
उन्हें देकर सहारा उन्हें शिखर तक पहुंचाऊंगी।
मेरे पति ने सदा मेरे सपने सजाए सर्दी गर्मी बरसात में।
उन्होंने किया है मेरी उन ख्वाहिशों को पूरा जो ना थी उनके हाथ में।
मैं गुस्सा हो जाती थी उन पर रूठ जाती थी जब कभी।
मना लेते सदैव मुझे मुझे ना रोने दिया कभी ।।
आगे बढ़ाये हाथ संग मेरे हर पल कठिनाई में।
हर बार मेरा सहारा बने मेरे अपने विश्वास की कलाई में।
उनके साथ मेरा ये बंधन रहे युगों-युगों तक अटूट।
प्रेम के इस सफर में ना हो कोई भी गलतफहमी की छूट।
उनके संग हंसी खुशी के हर लम्हे मैं संजो लूंगी।
हर विपत्ति में भी उनके संग कदम से कदम मिला लूंगी।
मेरा सुहाग हो सदा अमर, बाधाओं से हो परे।
उनकी मुस्कान में ही मेरी दुनिया रहे बसेरे।।