**बुलडोजर न्याय**
धूल उड़ती सड़कों पर, गर्जन करता बुलडोजर,
न्याय की नई परिभाषा, यह कैसा है मंजर?
घर टूटते दीवारें गिरतीं, चीखें गूंजतीं हवा में,
क्या यही है इंसाफ़ का मंजर, हर गली, हर डगर?
अधिकारों की दुहाई थी, अब खंडहरों में बदल गए,
सपने जो कभी आंखों में थे, अब रेत में धंस गए।
न्याय की आवाज़ थी ये, या बस ताकत की गूंज,
कानून के नाम पर, चलती है किसकी यह धुन?
कभी यह था सत्य का प्रतीक, अब डर का है इज़हार,
क्या सही, क्या गलत, अब कैसे हो इसका विचार?
जलते दिलों के सवाल, क्या यूं ही दबा दिए जाएंगे,
या इस बुलडोजर की गर्जना में सब सुलग जाएंगे?
सवाल उठते, उत्तर खोते, कौन करेगा न्याय?
ध्वस्त इमारतें, टूटे सपने, क्या यही है इंसाफ़ का माय?
न्याय का अर्थ बदल गया, या हम बदल गए हैं?
किसी के लिए इंसाफ़, तो किसी के लिए बस एक सजा बन गए हैं।
न्याय की इस नई परिभाषा में, कहां है वह संवेदना?
सिर्फ़ एक बुलडोजर के नीचे, क्या दबी है सारी भावना?
जो घर बनते वर्षों में, पलों में क्यों टूट जाते हैं?
क्या यही है बुलडोजर न्याय, जो हमें आज समझ आ रहे हैं?
"बुलडोजर न्याय प्रणाली" एक ऐसा शब्द है जिसे आमतौर पर उत्तर प्रदेश में कुछ सरकारी अधिकारियों द्वारा कथित अवैध निर्माण और अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के संदर्भ में इस्तेमाल किया गया है। इस प्रक्रिया में, अधिकारियों द्वारा अवैध निर्माण को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर का उपयोग किया जाता है। इसे "बुलडोजर न्याय" के रूप में इसलिए संदर्भित किया गया है क्योंकि इसे त्वरित और कड़े न्याय का प्रतीक माना जाता है।
इस प्रणाली की समर्थक लोग इसे अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कठोर और प्रभावी उपाय मानते हैं, जबकि आलोचकों का कहना है कि यह प्रक्रिया न्यायिक प्रक्रिया का पालन किए बिना की जाती है, जिससे नागरिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
यह शब्द अक्सर राजनैतिक चर्चाओं में उभरता है, और इस पर विवादास्पद दृष्टिकोण होते हैं, जो इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कानून व्यवस्था बनाए रखने के साधन के रूप में देखा जाता है या एक अनुचित और असंवैधानिक कार्रवाई के रूप में।