तुम खोजोगो मुझे हर तरफ, मैं तुम्हें ना मिलूंगा।
ना धरती पर ना गगन पर , ना आग की लपटों में मिलूंगा।
ना मिलूंगा बहती हवाओं में,ना सरिता ,सागर में मिलूंगा।
ना मिलूंगा दुनिया के किसी कोने में,मैं मेरे शब्दों में मिलूंगा।
पलट देना पन्ने किताब के तुम,मेरे अल्फ़ाज़ तुम्हें मिल जायेंगे।
मेरे जीवन के अंग-अंग के,करतब तुम्हें मिल जायेंगे।
ना मेरी तमन्नाएं होंगी,ना मेरी कल्पनाएं होंगी।
मेरे अतीत,आज और भविष्य की,तडपनाएं होंगी।।
ना मेरे पास होगी धन दौलत,ना मेरे पास वक्त होगा
ना होगा चाम,मांस ,ना मेरे पास रक्त होगा।
मिलूंगा मै सिर्फ मेरे विचारों में,यादों के संचालकों मे
तेरे अवचेतन मन में मेरा अस्तित्व होगा।।
प्रकृति का हर रूप मुझसे विरक्त होगा।
प्रकृति का हर कानून मेरे लिए सख्त होगा।
मांगूंगा भीख चंद सांसों की कुदरत से मैं।
भीख मांगने के चंद सैकड़ों का ना वक्त होगा।
वर्तमान और भावी वक्त के लिए ना शब्द होंगे।
मेरे अपने ही मेरे लिए पराये होंगे।
मुक्त हो जाऊंगा दुनिया के हर सुख-दुख , अच्छे -बुरे से।
मेरे लिए खुशियां और भावनाओं का जग व्यर्थ होगा।।