-----राजकुमार-----[ कहानी ___ प्रथम क़िश्त ]
राजकुमार गुप्ता की प्रवृति पूर्णत: नाम के अनुरूप थी । उसके खान पान , बात चीत , पहनावा , चलने का ढंग और हेयर स्टाइल में भी खूब रईसी झलकती थी । वह घर के नौकर चाकर और सड़क पर चलने वाले सामान्य जनों को कीड़ों मकोड़ों से जियादा नहीं समझता था। उसका सबसे बड़ा शौक था महंगी महंगी कारों में घूमना और ऐसी कारों वह इतनी ज्यादा स्पीड से चलाता था कि साथ बैठे किसी साथी या सहयोगी की रूह कांप जाए। राजकुमार की मम्मी मायादेवी किटी पार्टी में ही व्यस्त रहती थी वहीं उसके पिताजी को अपने सोने चांदी के व्यापार से ही फ़ुरसत नहीं मिलती थी । नौकरों के भरोसे ही राजकुमार का बचपन गुज़रा था और वह उन्हीं के भरोसे जवान हुआ था ।
राजकुमार के घर में पैसों की कमी तो थी नहीं , न ही कोई उसे रोकने टोकने वाला था । अत: वह पूरी तरह से बिगड़ चुका था और बिगडैल रईस जादों से ही उसकी दोस्ती थी । रोज़ रात को क्लब जाना , वहां तरह तरह के नशे करना और सुबह 4 बजे तक घर वापस आना तथा दोपहर 1 बजे तक सोना उसकी आदत बन चुकी थी । बड़ी मुश्क़िल से बीए तक पढाई करने के बाद उसने पढाई छोड़ दिया था । साथ ही अभी अपने पिता के व्यापार में भी हाथ बंटाने से उसे चिढ थी । वह घर में कह चुका था कि अभी 2/3 साल तक मुझे किसी काम में मत उलझाना । अभी मेरे खेलने खाने के दिन हैं , मुझे अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह से जीने दें । मुझ पर अभी कोई ज़िम्मेदारी न थोपो।
22 दिसंबर की रात 3 बजे वह क्लब से नशे की हालात में अपने घर लौट रहा था तो घर के पास एक फ़ुटपाथ पर सोये 5 लोगों पर अपनी कार चढा दी । जिससे पांचों व्यक्ति बुरी तरह से घायल हो गए। लेकिन राजकुमार बिना उनकी मदद किए अपने घर जाकर सो गया । फ़ुटपाथ पर सजग एक व्यक्ति राजकुमार की कार का नंबर नोट करके पोलिस को सूचना दे दिया ।
अगली सुबह यह दुर्घटना अखबारों की सुर्खियां बन गई । अखबारों में पोलिस की कार्यशैली पर नकारात्मक टिप्पड़ियां भी हुईं पर पोलिस वालों को राजकुमार के पिता ने पैसा खिलाकर चुप करा दिया । इसलिए पोलिस ने अपनी रिपोर्ट में लिख दिया कि जिस गाड़ी से एक्सीडेन्ट हुई है उसका नंबर जाली था अत: उसे खोजा न जा सका । इस घटना में घायल व्यक्तियों और प्रभावित सारे परिवार वालों को मनमाफ़िक पैसा देकर खरीद लिया गया ।
इतना होने के बाद भी राजकुमार के तौर में कोई फ़र्क नहीं आया । वह उसी तरह शराब के नशे में रैश ड्राइविंग करता रहा और लोगों को कुचलता रहा । बाद में अपने पैसों के दम से कानूनी पकड़ से खुद को छुटकारा दिलाता रहा ।
ऐसी ही एक गर्मी की रात 2 बजे राजकुमार क्लब से नशे की हालात में घर लौट रहा था । रिंग रोड 2 पर उसके सामने एक मोड़ आया और वह जैसे ही अपनी कार को मोड़ा सामने से एक रिक्शा चला आ रहा था । उस रिक्शे को एक नवजवान जिसका नाम मृत्युन्जय था वह चला रहा था और रिक्शे की सीट पर उसके पिताजी बैठे थे । वास्तव में मृत्यु न्जय के पिताजी को शाम से पेट दर्द हो रहा था । अत: वह उसे पास स्थित गुप्ता नर्सिंग होम ले गया था । 2 घंटे के उपचार के बाद जब उनके पिताजी को ठीक लगा तो वे वापस अपने घर आ रहे थे । रिक्शा जैसे ही राजकुमार की कार के पास पहुंचा पता नहीं क्या हुआ कि राजकुमार की कार लहरा कर मृत्युन्जय के रिक्शे के ठीक सामने आ गई और रिक्शे को टक्कर मारकर कुछ दूर जाकर खड़ी हो गई । कार का इंजन वैसे ही चालू था । शायद राजकुमार के द्वारा ही कार रोक दी गई थी । उधर रिक्शा पूरी तरह से तहस नहस हो गया था । मृत्युन्जय की छाती पर अच्छी खासी चोट लगी थी वहीं उनके पिताजी सही सलामत थे । राजकुमार ने एक नज़र उठाकर देखा तो उसे रिक्शे के पीछे लिख शब्द दिखा जहां पर लिखा था मृत्युन्जय निषाद। राजकुमार ने दोनों व्यक्तिओं को अच्छे से देखा और फिर अपनी कार को अपने घर की ओर दौड़ा वहां से रफ़ूचक्कर हो गया । उधर मृत्युन्जय बुरी तरह घायल हो चुका था । उसका रिक्शा क्षतिग्रस्त हो चुका था । उसकी स्थिति देखकर उसके पिता मेघनाथ कांप गये। उसे यह एहसास हो रहा था कि अगर मृत्युन्जय को तुरंत इलाज नहीं मिला तो कुछ अनिष्ट हो सकता है । मेघनाथ को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे ? इस बीच वहां से 10/12 गाड़ियां गुज़रीं पर किसी गाड़ी वाले ने रुककर उन्हें मदद पहुंचाने का प्रयास नहीं किया ।
( क्रमशः)