कहाँ है वो इंसान, कहाँ है वो इंसान
जो कहते नहीं थकता था, प्रिय मैं हूँ।
मैं हूँ मैं हूँ कहते नहीं थकने वाला
कहाँ हैं कहाँ है एक स्त्री का विश्वास।।
तोड़ने वाला प्रिय के प्रियवर
नहीं जानती थी नहीं जानती थी।।
ऐसे भी छली जाती हैं स्त्रियाँ
पुरुष अपना पुरुषत्व पूरा करने।।
ऐसी भी साजिश करते हैं
ऐसी भी साजिश करते हैं।।