हम क्यूँ ही नहीं समझ पाते, स्वयं के अंदर के द्वंद को, क्या कभी सुनने की कोशिश की है हमने, या सिर्फ बाहर के शोर में, भीतर का द्वंद सुनना ही नहीं चाहत हम। क्या कभी हमने अपने आपको सुनने की कोशिश की है। नहीं न, यही तो हमारी सबसे बड़ी भूल है। की हम स्वयं को खोते-खोते इतना खो देते हैं कि अपना वजूद भी हमें याद नहीं रहता।