एक स्त्री की पीड़ा को समझना क्या किसी के वश में नहीं है, या कोई इसे समझना ही नहीं चाहता है। वह चाहे एक पुत्री के रूप में, बहन के रूप में, पत्नी के रूप में अथवा माँ के रूप में हो। हर जगह वह अपने मन की बात कहने के लिए ऐसा व्यक्ति ढूंढती है, जिससे वह अपने भीतर की हर कसक, हर पीड़ा को साझा कर सके। परन्तु उसकी तलाश अधूरी की रह जाती है। अंदर से पूरी तरह से टूटी हुई स्त्री लोगों के सामने एक खूबसूरत और खुशहाल व्यक्तित्व का झूठा मुखौटा पहने हुए रहती है, जैसे की उससे ज्यादा खुश और संपन्न कोई भी नहीं है।