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स्त्री का कोमल हृदय

4 मार्च 2024

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एक औरत क्यूँ ही अपने आप को इतना सस्ता मान  कर स्वयं के साथ अन्याय करने का अधिकार
किसी को भी दे देती है।

कोई भी जो उसको सिर्फ प्यार के दो लफ्ज़ बोल कर उसके स्वयं के ऊपर चाहे वो उसका
मन हो, आत्मा हो अथवा उसका स्वयं का वजूद हो, उसको छलने का अधिकार दे देती है।

क्यूँ ही किसी को भी स्वयं के साथ कुछ भी करने का अधिकार दे देती है।

जबकि जानती है की की एक स्त्री का हृदय कितना कोमल होता है की उसके साथ हुए इस
विश्वासघात से वो इतना टूट जाती है, इतना बिखर जाती है, की फिर वो ना जीना चाहती है
और ना ही वो मर पाती है।

एक स्त्री क्यूँ नहीं भूला पाती अपने साथ किये गए अन्याय को, क्यूँ नहीं भूला पाती
की उसको छला गया है। स्वयं उसके ही द्वारा जिसको वो अपना सर्वस्व मान बैठी थी।

हर वक्त उन्हीं यादों, उन्हीं बातों में खो कर खुद को ही खोती रहती है। ना रातों
को सो पाती है, ना ही दिन को जाग पाती है। और अपनी इस तकलीफ को स्वयं के अंदर ही रखते-रखते
एक दिन स्वयं को ही खो देती है।

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