shabd-logo

स्त्री का अपने वजूद के लिए तरसना

27 फरवरी 2024

12 बार देखा गया 12

 आज मैं अगर बात करूं, जब एक कन्या संतान माँ के गर्भ मे होती है। तभी से उस संतान को अपने जीवन को बचाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। क्योंकि कोई भी समाज का व्यक्ति कभी भी  गर्भवती महिला जोकि गर्भ से होती है, उसको आशीष देते हुए यही कहते हैं की उसके गर्भ से पुत्र रत्न की प्राप्ति हो। मैं यह जानना चाहती हूँ क्या कन्या संतान के लिए कोई है जो आशीष में कहे की ईश्वर करें आपको लक्ष्मी रूप में कन्या संतान की प्राप्ति हो। कैसी ही विडंबना है हमारे इस समाज की स्वयं स्त्री को ही स्त्री से जुदा होते हुए देखा जाता है।   

आरती की अन्य किताबें

आरती

आरती

मैं कोई लेखिका नहीं हूँ में एक ऐसी स्त्री हूँ जो स्वयं के साथ होते हुए अन्याय को लिखने का प्रयास कर रही हूँ।

27 फरवरी 2024

1

एक स्त्री अपनी पीड़ा किससे कहे

26 फरवरी 2024
2
2
3

एक स्त्री की पीड़ा को समझना क्या किसी के वश में नहीं है,  या कोई इसे समझना ही नहीं चाहता है। वह चाहे एक पुत्री के रूप में,  बहन के रूप में,  पत्नी के रूप में अथवा माँ के रूप में हो। हर  जगह वह अपने मन

2

स्त्री का अपने वजूद के लिए तरसना

27 फरवरी 2024
0
0
1

 आज मैं अगर बात करूं, जब एक कन्या संतान माँ के गर्भ मे होती है। तभी से उस संतान को अपने जीवन को बचाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। क्योंकि कोई भी समाज का व्यक्ति कभी भी  गर्भवती महिला जोकि गर्भ से

3

स्त्री का अपने वजूद के लिए तरसना

27 फरवरी 2024
1
2
1

 आज मैं अगर बात करूं, जब एक कन्या संतान माँ के गर्भ मे होती है। तभी से उस संतान को अपने जीवन को बचाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। क्योंकि कोई भी समाज का व्यक्ति कभी भी  गर्भवती महिला जोकि गर्भ से

4

ऐसी भी साजिश करते हैं

2 मार्च 2024
2
3
5

 कहाँ है वो इंसान, कहाँ है वो इंसान  जो कहते नहीं थकता था, प्रिय मैं हूँ।   मैं हूँ मैं हूँ कहते नहीं थकने वाला   कहाँ हैं कहाँ है एक स्त्री का विश्वास।।   तोड़ने वाला प्रिय के प्रियवर   नहीं जानत

5

स्त्री का कोमल हृदय

4 मार्च 2024
0
1
0

एक औरत क्यूँ ही अपने आप को इतना सस्ता मान  कर स्वयं के साथ अन्याय करने का अधिकार किसी को भी दे देती है। कोई भी जो उसको सिर्फ प्यार के दो लफ्ज़ बोल कर उसके स्वयं के ऊपर चाहे वो उसका मन हो, आत्मा हो अ

6

जीवन की परिभाषा

4 मार्च 2024
1
2
1

जीवन की परिभाषा क्या है।   क्यूँ न समझे रे तू प्राणी।।   कितना अनमोल तेरा जीवन है।   क्यूँ न समझे रे तू प्राणी।।   पल-पल तू स्वयं को खोता।   क्यूँ न समझे रे तू प्राणी।।   बहुत मोल है तेरे जीवन क

7

स्त्री का साक्षर होना उतना ही आवश्यक है जितना की एक पुरुष का

6 मार्च 2024
0
1
0

स्त्री का साक्षर होना उतना ही आवश्यक जितना की एक पुरुष का लेकिन विडंबना यह है की आज भी इस बात को स्वीकार करने मे कितने ही लोग सक्षम हैं। एक कन्या के जन्म लेने के साथ ही उससे यह अपेक्षा की जाने लगती है

8

मन की तकलीफ

11 मार्च 2024
1
2
2

 मन की तकलीफ किसको सुनाएँ   किससे कहें अपने अंदर के उठते तूफान को   कोई है क्या ऐसा जो समझ पाए बिन कहे ही   क्यूँ ही बेचैनी होती है इस दिल में   क्यूँ ही तड़प होती है इस देह में    हम कभी ना कह पा

9

आँसू

15 मार्च 2024
1
2
3

 ईश्वर ने भी बहुत सोच कर बनाएँ होंगे आँसू   आँसू अगर नहीं बनाए होते तो सोचो क्या ही होता   कोई अपनी तकलीफ ना किसी से कह सकता और ना कोई किसी की तकलीफ समझ सकता आँसू ही होते हैं की अगर खुशी हो तो भी

10

स्वयं के अंदर का द्वंद

16 मार्च 2024
0
1
0

हम क्यूँ ही नहीं समझ पाते, स्वयं के अंदर के द्वंद को, क्या कभी सुनने की कोशिश की है हमने, या सिर्फ बाहर के शोर में, भीतर का द्वंद सुनना ही नहीं चाहत हम। क्या कभी हमने अपने आपको सुनने की कोशिश की है। न

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए