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अमर भाग 2

7 जनवरी 2022

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सभी लोगो को एक साथ देखकर ,भगवान शिव चौक उठते है , सभी लोग उनकी वंदना करते हैं , ""!!!

भगवान शिव सभी को आशीर्वाद देते हैं ,सभी मां पार्वती को भी प्रणाम करते है,साथ ही गणेश वंदना भी करते है ,कार्तिकेय और गणेश श्री नारायण जी और माता लक्ष्मी को दंडवत प्रणाम करते हैं
महादेव भी विष्णु जी की वंदना करते हैं ,!!!

महादेव सभी को आसन ग्रहण करने के लिए कहते हैं, और फिर विष्णु जी से आने का अभिप्राय पूछते हैं ,*" आप लोगो को एक साथ यह आया देख तो मारा मन प्रफुल्लित हो उठा , भगवन विष्णु आप सब किसी विशेष प्रयोजन से यहां आए हैं ऐसा प्रतित  हो रहा है ,*"!!!

विष्णु जी अपनी मनमोहक मुस्कान से उन्हे देखते हैं , और फिर कहते हैं,*" हे देवों के देव भोले भंडारी आप के दर्शन मात्र से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं, और वैसे भी कोई भी वार्ता हो  या व्यवस्था आपसे छुपा नही है ,आप त्रिकाल दर्शी हैं , तो आप तो हमारे आने का प्रयोजन भी जान ही गए होंगे , *"!!!!

महादेव कहते हैं ,*" आपका  कहना अनुचित नहीं है ,किंतु मैं तो आपके मुखारबिंदु से सुनना चाहता हूं ,आप बोलते हैं तो लगता है जैसे पुष्पों कि वर्षा हो रही है ,कृपया कर आप स्वयं बताएं,*"!!!

विष्णु जी अपनी चिरपरिचित मुस्कान बिखेरते हुए सारी बात महादेव को बताते हैं ,*"!!!!
उनकी बात सुन महादेव विचार में पड़ जाते हैं , गणेश जी और कार्तिकेय उस बालक तारक को देखते हैं , मां पार्वती के साथ मां लक्ष्मी भी बैठी हुई थीं वह दोनो भी महादेव को देख रही थी की उनका उत्तर क्या होगा ,*"!!!
वैसे वहां बैठे सभी में यह विशेषता थी की किसी को भी अमर कर सकते थे ,पर नियति को कोई टाल नही सकता है ,स्वयं भगवान भी नही ,महादेव को भी शनि देव ने कुछ वर्षो तक सागर के तलहटी में रहने को विवश कर दिया था, *"!!!

भोले भंडारी सभी की ओर देखते है फिर कहते हैं ,*" भगवान विष्णु ,में क्षमा चाहता हूं , मेरा कार्य तो संहार करना है ,यह कार्य तो भगवान ब्रह्मा के द्वारा ही लिखी होती है ,वह स्वयं ही अपनी लेखनी को बदल सकते हैं ,उन्ही से निवेदन करना होगा ,*"!!!!

सभी लोग इस बात से सहमत होते हैं , सभी महादेव और मां पार्वती  को प्रणाम कर जाने वाले होते हैं की पार्वती जी कहती हैं ,*" रुकिए मैं भी आप लोगो के साथ चलती हूं बहुत दिन हो गए छोटी बहन से मिले , और ब्रम्ह लोक गए भी मैं भी साथ चलती हूं ,तीनो बहने वहां थोड़े दिन साथ रहेंगे , *"!!!
उनकी बात सुन महादेव मुस्करा कर कहते हैं ,*" देवी जब तुम जा रही हो तो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हुं इसी बहाने हम सभी एकत्र हो जायेंगे ऐसा अवसर जल्दी कहां 
प्राप्त होता है , *"!!!

महादेव की बात सुन कार्तिकेय और गणेश भी साथ जाने की इच्छा जताते है , सभी लोग एक साथ विमान में बैठ कर ब्रम्हा लोक की ओर चल पड़ते हैं, *"!!

ब्रम्ह लोक में माता सरस्वती वीणा से सुमधुर संगीत की रचना कर रही थी ,अचानक उनके हाथ रुक जाते हैं , ब्रम्हा जी बड़ी तन्मयता से सुन रहे थे वह चौक उठते हैं और पूछते हैं, *" देवी सरस्वती इतने मधुर संगीत को अकस्मात रोक क्यों दिया अभी तो उसमें कई राग आने वाले थे, *"!!!

माता सरस्वती कहती है , *" क्षमा चाहती हू नाथ , मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है ,जैसे कई शक्तियां हमारी ओर आ रही हैं ,इसलिए मेरे हाथ रुक गए ,*";!!

उसी समय उन्हे विष्णु जी का पुष्पक विमान तेज़ी से आता दिखलाई पड़ा ,और वह जब तक कुछ विचार करते विमान ब्रम्ह लोक पर उतर जाता है, और सभी नीचे उतर कर ब्रम्ह देव की वंदना करते हैं ,*"!!

ब्रम्ह देव भी दोनो भगवान की वंदना करते हैं ,और प्रसन्न हो पूछते है ,*" प्रभु यदि मेरी अश्यकता थी तो मुझे स्मरण करते मैं आ जाता ,*"!!!

विष्णु जी कहते हैं ,*" ब्रम्ह देव कभी कभी तो आपके लोक में आने का अवसर हमे भी दिया करे, *"!!!

माता सरस्वती पार्वती और लक्ष्मी को गले लगाकर अपने बगल में बिताती हैं , उधर तीनो बालक गणेश ,कार्तिकेय और तारक में मित्रता भी हो गई थी ,और तीनो अपनी ही क्रीड़ा में मगन हो गए थे ,*"!!!

सभी के आने का अभिप्राय जान कर ब्रम्ह देव कहते हैं ,*" प्रभु देव आप सब इसी बहाने मेरे इस लोक को पवित्र करने आ गए यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है, किंतु मैं जो एक बार लिख देता हूं उसे पुनः नही पढ़ता वह लेखनी चित्रगुप्त के पास चली जाती है , और वैसे भी मनुष्य जीवन का हिसाब किताब यमराज रखते है , इसे अमरत्व तो वही दे सकते हैं , सभी एक दूसरे को देखते हैं  , !!!
यमराज जी को बुलाया जाता है ,यमराज आकर उनकी बात सुनकर कहते है ,*" प्रभु यह तो चित्रगुप्त के बही खाता से पता चलेगा की इस बालक के बारे में पिता परमेश्वर ब्रम्ह देव ने क्या लिखा है , *"!!!

सभी यमराज को देखते हैं,तो यमराज चित्रगुप्त को बही खाते के साथ बुलाते हैं और बालक तारक के बारे में पढ़ने के लिए कहते हैं,*"!!!

चित्रगुप्त बही खाता खोल कर उसमे बालक का पन्ना खोल कर पढ़ना शुरू करते हैं ,*" पूर्णिमा के दिन विश्लेखा नक्षत्र में ब्रम्ह लोक में  ,तीनो देव और तीनो माताओ के साथ साथ उनके परिवार गण और उनके विशेष गण के अलावा बालक के मानिंद माता पिता ,ऋषि अत्रि और तारा , और देवर्षि  नारद मुनि के साथ यमराज और चित्रगुप्त ब्रम्ह लोक में एकत्रित होंगे ,और बालक गणेश और कार्तिकेय के साथ क्रीड़ा में मगन होगा और चित्रगुप्त उसकी भविष्य पढ़ेंगे तभी उस बालक की मृत्यु होगी ,*"!!!

सभी चौकते हैं ,और इतना बोलते ही ,बालक वही गिरता है ,और उसके प्राण निकल जाते हैं, सभी भौचक्के रह जाते जाते हैं ,अर्थात बालक तो वैसे ही अमर था पर नियति किसी को नही छोड़ती तो अत्रि ऋषि और उनकी पत्नी के मन में उसे अमर करने की भावना न जागृत होती तो उसे कुछ होना ही नही था, क्योंकि इतने लोग एक साथ कभी एकत्रित नही हो पाते ,,!!!

अत्रि ऋषि और तारा वहीं गिरकर विलाप करने लगते हैं और सभी देवताओं को कोसने लगते हैं की *"इतने महान लोगो के उपस्थिति में मेरा बालक का प्राण निकल गया ,आप लोग चाहते तो वह जीवित रह सकता था ,*"!!!
उनका विलाप सुन विष्णु जी कहते हैं,*" ऋषिवर अत्रि ,आप तो स्वयं सर्व ज्ञाता हैं ,और आपका और देवी तारा का  इस प्रकार विलाप करना हमे भी द्रवित कर रहा है , आप अपने विलाप को विराम दे बहुत जल्द ही यह बालक पुनः अपनी माता के कोख में आएगा और उसके बाद वह अमर ही रहेगा , *"!!!

यह सुन दोनो शांत होते हैं और सभी को प्रणाम कर बोझिल मन से वहां से जाते हैं ,*" ,!!
कुछ वर्षो के पश्चात उनके गर्भी में वही बालक बुध बनकर जन्म लेता है ,*"!!

इसका अर्थ ये है की हर जीव का भविष्य लिखित है ,आप कुछ भी कर ले होना वही है जो नियति चाहती है , *"!!


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