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अमर भाग 1

6 जनवरी 2022

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सप्त ऋषियों में अत्रि ऋषि भी आते हैं , एक बार की बात है अत्रि ऋषि वन विहार कर रहे थे,वह और उनकी पत्नी तारा घने वन में घूमते हुए एक बड़े से तालाब के किनारे पहुंचते हैं , वहा उन्हे किसी बच्चे के रोने कि स्वर सुनाई पड़ती है,तो दोनो पति पत्नी चौक उठते हैं, !!!

वह स्वर की ओर जाते हैं वहां पर एक नवजात शिशु को देख दोनो ही आश्चर्य चकित होते हैं , वह शिशु बहुत ही प्यारा था, उस समय अत्रि ऋषि और तारा को कोई बालक नही था , !!!
अत्रि ऋषि तारा की ओर देख कहते हैं *" पता नही किस कारण किसी ने इस शिशु को यहां जन्म देकर छोड़ गई ,*"!!

तारा कहती हैं *" यह हमारे लिए हो किसी ने छोड़ा है ,क्यों न हम इसे अपना ले इस प्रकार मेरा मन भी लगा रहेगा ,और हमारा आश्रम भी भरा भरा लगेगा ,*"!!!

अत्रि ऋषि उसकी बात मान जाते है , दोनो ही शिशु को बड़े प्यार से रखते हैं, तारा का तो जैसे वह आंखो का तारा बन गया था , शिशु के स्नेह से तारा के वक्ष में दुग्ध प्रवाह शुरू हो जाता है , तो वह उसे दुग्ध पान भी आसानी से करने लगी ,, अत्रि ऋषि भी जब समय पाते तो उसी के साथ खेला करते वह बालक था भी इतना सुंदर की जो देखता वह देखता ही रहता , *"!!

धीरे धीरे वह शिशु से बालक होता है , अत्रि ऋषि उसके सारे संस्कार पुत्रवत करवाते हैं , सभी उस बालक को उनका पुत्र ही मानते थे ,उन्होंने उसका नाम तारक रखा था , *"!!!

तारक धीरे धीरे नौ साल का होगया , अत्रि ऋषि और तारा उसके बाल सुलभ बातो में इतना खोए रहते थे कि जब समय व्यतीत हो जाता उन्हे पता ही नही चलता था ,*"!!!

एक दिन  बालक बाहर हिरणों के साथ खेल रहा था ,की अचानक तारा की आंखो से आंसु निकलते हैं ,, अत्रि ऋषि यह देख व्यथित हो उठते हैं , वह उस असमय निकले अश्रु का कारण पूछते हैं ,*" प्रिए तुम्हे ऐसा कौन सा कष्ट  हो गया  की तुम्हारे  इन सुंदर नयनों से अश्रु निकलने लगे ,*"!!!

तारा कहती हैं ,*" हे ऋषिवर मुझे कोई कष्ट नहीं हुआ है ,परंतु इस अपने बालक को खेलते देख मन में यह बात आ गई की हम तो अमर हैं , परंतु यह बालक जो हमारे दिल का टुकड़ा है यह तो अमर नही है ,एक दिन यह  हमारे सामने संसार  छोड़ कर चला जायेगा तब हम इसके बिना कैसे जिएंगे,*"!!!

अत्रि ऋषि आवेश में कह देते हैं *" प्रिए तुम अपने अनमोल आंसु को गिराना बंद करो , मैं इसे भी अमर करवा दूंगा ,यह हमेशा हमारे साथ ही रहेगा ,!!!!

तारा प्रसन्न होकर कहती हैं,*" तब तो कोई समस्या ही नहीं रहेगी ,*"!!!

अत्रि ऋषि भी उस बालक के बिना एक क्षण भी नही रह पाते थे ,!!
अत्रि ऋषि ने नारद जी को याद किया तो नारद जी उसी समय प्रकट हो जाते है और कहते  हैं ,*"  नारायण नारायण ऋषिवर आपको मेरा प्रणाम स्वीकार हो , कहे क्या आदेश है मेरे लिए ,*"!!

अत्रि ऋषि और तारा दोनो ही उन्हे आशीर्वाद देते हैं और अत्रि ऋषि कहते हैं,*" देवर्षि नारद ,यह हमारा बालक तारक को अमरत्व प्रदान करवाना है , तो आप ही बताओ क्या करे , *"!!!
नारद मुनि कहते हैं**नारायण नारायण अब इसके लिए तो पालनहार श्री नारायण जी ही कुछ कर सकते हैं ,क्योंकि सभी जीव जंतुओं के पालन करता वही हैं, *"!!!

अत्रि ऋषि कहते है ,*" प्रिए तारा चलो हम बालक के साथ पाताल लोक चलते हैं ,वहा श्री नारायण जी से कह कर इसे अमर करा देते हैं, *"!!!

नारद मुनि कहते हैं ,*" नारायण नारायण ऋषिवर  यदि आप अन्यथा ना ले तो मैं भी आपके साथ नारायण दर्शन के लिए चलू,*"!!!

अत्रि ऋषि कहते हैं *" भला मुझे क्या कष्ट होगा उल्टे आप साथ चलेंगे तो नारायण को  प्रसन्न करना आसान होगा , *"!!

नारद मुनि ,तारा ,तारक और अत्रि ऋषि सभी साथ पाताल लोक में नारायण के सामने पहुंच कर उनकी वंदना करते हैं ,!!!! 

विष्णु जी के पास लक्ष्मी माता भी विराज मान थी , वह शेषनाग की सैया पर लेटे हुए थे, और लक्ष्मी माता उनके चरणों को दबा रही थी ,यह बहुत ही मनोरम दृश्य था , जिसे देखने के लिए सभी आतुर रहते थे, !!!

भगवान विष्णु उनकी ओर देख पूछते हैं *" कहिए ऋषिवर अत्रि आज अकस्मात सपरिवार  आने की आवश्यकता क्यों कर पड़ गई ,और ये बालक कौन है ,*"!!??

अत्रि ऋषि हाथ जोड़कर कहते हैं *" प्रभु ये मेरा पुत्र तारक है , हैं तो अमर हैं ,और प्रेम वश हम अपने पुत्र को भी कभी खोना नही चाहते हैं , तो हमारी इच्छा है की आप इसे अमर कर दे तो हमारी समस्या दूर हो जाए,*"!!!

विष्णु जी बालक को देख मुस्कराते हुए बोले,*" ऋषिवर आपका विचार तो अतिउत्तम है ,अब कोई भी माता पिता अपने बालक को खोना नही चाहते हैं ,तो आप इसे अमर कराना चाहते हैं यह अच्छी बात है ,किंतु मैं तो पालन कर्ता हूं ,यह कार्य तो संहार कर्ता अर्थात प्रभु महादेव के हाथो में हैं तो आप को उनके पास जाना चाहिए वही इसका निवारण कर सकते है ,*"!!!!

अत्रि ऋषि कहते हैं *" धन्यवाद प्रभु , मैं प्रभु महादेव  के पास जाता हूं , *"!!!

उनकी बात सुन लक्ष्मी माता को  इस प्रकरण में उत्सुकता जागने लगी तो वह विष्णु जी से कहती हैं ,*" प्रभु क्यों न हम भी कैलाश धाम चले ,वैसे भी उनके दर्शन किए हमे कई दिन हो गए हैं इसी बहाने हम भी उनके दर्शन कर लेंगे ,*"!!!

विष्णु जी भला माता लक्ष्मी की बात कहा टालने वाले थे, *"!!!!

शेष नाग भी कहां पीछे रहने वाले थे ,वह भी चलने को तैयार हो जाते हैं ,*"!!!
सभी लोग मिलकर प्रभु के विमान में बैठकर  कैलाश पर्वत की ओर चल देते हैं ,!!!

विमान में भगवान विष्णु ,माता लक्ष्मी , अत्रि ऋषि ,तारा, बालक तारक , नारद मुनि , शेषनाग सभी साथ हैं ,वह सब कैलाश धाम पहुंच जाते हैं, !!!!
क्रमशः


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