शकुंतला अब मै बहुत थक गया हूँ मुझे भी अपने पास आने का रास्ता बता दो। बच्चों के स्नेह में आधा दिन कट जाता था वह भी सब होस्टल में डाल दिए। निंदित विरान एक कमरे में लेटे श्याम लाल जी अपनी पत्नी को याद करते हुए फुसफुसा रहे थे।
आज श्याम लाल जी के कानो में आवाज आई थी कि अब उन्हें भी ओल्ड एज होम में भेजने की व्यवस्था बनाई जा रही है। सुनकर उन्हें बहुत ही मानसिक कष्ट हुआ था। बेटा - बहु उनकी ताबेदारी करे या अपनी-अपनी नोकरी। काम वाली कितना अच्छा खाना बनाती है और दवादारु भी ठीक समय पर करती है, फिर भी बात बात पर नुक्ता चीनी। बस सारा दिन चीखने- चिल्लाने का काम। पडोसी भी तंग आ चुके।
"ओल्ड एज होम ' भेज कर कम से कम सबकों शांति तो मिलेगी। दूसरी बात इसमें हर्ज भी क्या है, समय की मांग है। कालोनी के अन्य लोग भी तो अपने बुजुर्गों को ओल्ड होम में शिफ्ट कर रहे हैं। बेटा खामोश हैं और उसमे कुछ कहने सुनने की शक्ति दिखाई नहीं दे रही है। दो दिन बाद शादी-शुदा बेटी को पता चला। वह तुंरत दोड़ आई। रात को भाई - भाभी को बहुत समझाया - बुझाया और फटकार भी लगाई लेकिन कोई भी बात का हल नहीं हुआ। अपने कमरे में बैठे श्याम लाल सुनकर फफक पडे। बेटी उनके पास गयी तो उसे बर्दाश्त नहीं हुआ।
" पापा आप अपना जी छोटा मत करो, आपकी तरफ़ से भाभी-भईया ही मर गए हैं, मै तो अभी जिंदा हूं और श्याम लाल जी को गाडी में बैठा अपनी ससुराल लोट आई। सुबह हुई। दोनो उठेऔर श्याम लाल जी के कमरें की तरफ गये वहां न श्याम लाल जी है और न उनकी बहन। बहु समझ गयी और अपना नाक आसमान में चढा बोली - आपकी बहन बिना बताये पापा को साथ लेकर चली गई भला हम कोनसा रोक रहे थे
स्वरचित रचना : नैपाल सिंह