आलाकमान जी का फोन सुनकर मेरा सर चकरा गया था। दस दिन बाद जीत की खुशी में दल के सभी जनसेवक दस दिन बाद एक मंच पर इकट्ठा होने जा रहे थे। आलाकमान जी की भोजन के साथ देशी घी की कोई स्पेशल डिस बनाने की योजना जो थी। देशी घी किसी कंपनी या बाजार से संबंधित खरीदने का आदेश भी नही था। जैसे - तैसे गांव के किसानों से घी खरीदना था। यह काम चुनौतीपूर्ण था और कई दिनों से मेरे सर का दर्द भी बना हुआ था।
एक दिन मैडम जी, बोली,
"आपके सर दर्द का इलाज मेरे पास है, अगर मानों तो,,,,, मैने उनकी बात बीच में ही रोकते हुए पूछा।
" क्या? "
" अखबार या फेसबुक पर शुद्ध देशी घी प्रतियोगिता का इश्तिहार निकलवा दो और जो घी शुद्धता के मानकों पर खरा उतरेगा उस पर एक लैपटॉप का इनाम रख दो। लैपटॉप सरकार की अनुकंपा से आपकों मिल ही गया है। " मैडम जी की बात को पटरी पर उतारा तो मैं अपनी मंजिल तक पहुंच ही गया। तीन दिन के भीतर ही भीतर मेरे सर का दर्द छु मंतर हो गया। घी की एक आध किलो की पैकिंग से मेरा घर गोदाम बन गया था। 'न खाऊँगा और न खाने दूंगा' सरकार की इस कठोर नीति के डर से खुली जांच प्रतियोगिता करवाई और लक्की ड्रा निकाला। एक लैपटॉप देकर बाकि किसान भाईयों का आभार व्यक्त किया किया। बिना गोली के रात को नींद अच्छी आई। सुबह उठकर घी को टपो से निकलवा कर टीनो में पैक करवाया । पंद्रह टीन लबालब भर गए। गाड़ी में लोड करवाते समय मेरी इच्छा सारे टीन भेजने की की थी लेकिन पास खड़ मैडम जी, मेरी तरफ अपनी कसैली आखें निकाल कर एकाएक बोली,
"देखो जी, आपके हाईकमान का आर्डर दस टीनो का था सो वह हो गया बाकि के यहीं छोड दो! क्या आपका और आपके लोगों का ही मन करता है देशी घी की डिस खाने को?",,,,,,,
दस मिनट बाद देखता हूं मैडम जी, रसोई में बैठी हलवा घोट रही हैं और मैं भी डर को बगल में पटक कर सामने प्लेट आने का इंतजार करने लगा।,,,,,,
स्वरचित :