अंशकालीन कविता के पति का तबादला हो गया था। कालोनी में अकेली थी। बालक मुंना भी गोद में नहीं था। यूवा - योवन पर निखार, सबसे मिलन सार स्वभाव और टच फोन उसकी जान था। घंटो बातें करती हंसती कुम्लाती और फिर अपने गेट का ताला लगा बाजार निकल जाती। उसका यह नियमित रूप से काम था। ऐसी स्थिति में उसे तो क्या? किसी को भी आज का शिक्षित समाज भी किसी बुरे आचरण के शिवा और क्या सोच सकता है?
पडोसियों ने अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए कविता से किनारा कर लिया। धीरे-धीरे कविता ने इस बात को महसूस किया तो उसने भी सहानुभूति जतानी छोड़ दी। अचानक एक दिन पडोसियों के तेवरों में परिवर्तन हुआ। मकान मालिक से संपर्क किया और कविता से मकान खाली करवाने का जौर दिया।
-देखो भाई, मैं सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करता जब तक अपनी आंखों से देख नहीं लेता। अगर ऐसा है तो मुझे मकान खाली करवाने में वक्त नहीं लगेगा। जब भी वह घर से बाहर निकलती फोरन मुझे सूचना देना। " पहले की तरह कविता आज भी गेट का ताला लगाकर बाजार की तरफ निकल गई थी। मकान मालिक के साथ चार लोग ओर थे। कविता का पीछा किया। आखिर में देखा, वह लोग एक दूसरे की तरफ देख चुरलू भर पानी में डूब मरे। कविता एक आनाथालय के प्रांगण में बैठ बच्चों को पढ़ाने में जुट गई थी।
नयपाल सिंह चौहान
यमुना नगर (हरियाणा)