रविवार का दिन था। रवि पार्क में खेलते - खेलते किसी एक लड़के कोई बात सुनकर शंका में पड़ गया। उसका आगे खेल में मन नहीं लगा। अतः अपना शक दूर करने के उद्देश्य से वह तुरंत घर लौट आया।
"पापा! आपकी छवि पूरे शासन - प्रशासन विभाग में एक ईमानदार और निडर सिपाही आफिसर की है, लेकिन फिर भी आपने उस खतरनाक शुटर को थाने में से रिहा करवा दिया है।" पापा ने पहले तो बेटे की इस बात का ध्यान नहीं दिया और अखबार पढ़ने में लगे रहे। रवि बाहें झंझोडते हुए फिर बोला,
" बोलों न पापा!,,,,,,, बताओ न पापा,,,, आपने ऐसा क्यों किया? आपको नहीं पता पापा, मेरे स्वाभिमान को कितनी करारी चोट लगी है। " चोट का नाम सुनकर पापा को होश सा आया और अखबार बंद करके बेटे की ओर देखा, उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव नहीं थे। आज जरूर बेटे का किसी ने अपमान किया होगा। और न चाहते हुए भी पापा ने बेटे को बताना पड़ा।
" बेटा, वह बड़े नेता का आदमी था। " रवि ने एक गहरी सी सासं ली और वापस पार्क में पहुंच कर खेलने लगा।
अब उसकी समझ में आ रहा था लोकतंत्र का अस्तित्व नेताओं के हाथों में है, कानून के नहीं।
स्वरचित :
नयपाल सिंह चौहान,
यमुना नगर - 135001 (हरियाणा)