"अमरावती के छलावे" यह कहानी पूर्णतया काल्पनिक है और इसके हर पात्र भी काल्पनिक हैं | "अमरावती के छलावे" कहानी है अनोखी किरदार अमरावती के जीवन से जुड़े किरदारों के जीवन यानि जिंदगी की | जिंदगी की बात की जाए तो जिंदगी में वक्त आमतौर पर दो रूपों में आता है-एक तो अच्छा वक्त और दूसरा बुरा वक्त। अच्छे वक्त की कोई खास परिभाषा नहीं है पर सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा होता है और बुरा वक्त, इसी कई परिभाषाएँ हैं उनमें से एक है परीक्षा की घड़ी। जिस समय हमारे आसपास के व्यक्तित्व खास कर उनकी पत्नी अमरावती का एक नया रूप निकल कर सामने आता है और परेशानियाँ और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं। इस कहानी के एक महत्त्वपूर्ण किरदारों में से एक हैं एडिटर साहब राम अमोल पाठक जी, अमरावती के पति | इस अध्याय में कहानी इनके ही इर्द-गिर्द ही घूमती नज़र आएगी। जिनके लिए कहा जा सकता है कि उनकी जिंदगी में अच्छा वक्त करीब 18-19 वर्षों तक रहा और उसके बाद आई परीक्षा की घड़ी यानी कि बुरा वक्त जब उनके आसपास के व्यक्तित्व यानी पर्सनैलिटीज़ का नया रूप उनको देखने को मिला और नए तजुर्बे हुए। इस कहानी की शुरुआत मैं बिल्कुल शुरू से करती हुं, बात जमाने की है जब इंटरनेट की मौजूदगी हमारी जीवन में नहीं के बराबर थी और कविताएं, कहानियां और किताबें हमारे मोबाइल स्क्रीन या लैपटॉप स्क्रीन पर नहीं बल्कि कागज पर छपा करती थीं।
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