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अमरावती के छलावे

तीषु सिंह 'तृष्णा'

6 अध्याय
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"अमरावती के छलावे" यह कहानी पूर्णतया काल्पनिक है और इसके हर पात्र भी काल्पनिक हैं | "अमरावती के छलावे" कहानी है अनोखी किरदार अमरावती के जीवन से जुड़े किरदारों के जीवन यानि जिंदगी की | जिंदगी की बात की जाए तो जिंदगी में वक्त आमतौर पर दो रूपों में आता है-एक तो अच्छा वक्त और दूसरा बुरा वक्त। अच्छे वक्त की कोई खास परिभाषा नहीं है पर सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा होता है और बुरा वक्त, इसी कई परिभाषाएँ हैं उनमें से एक है परीक्षा की घड़ी। जिस समय हमारे आसपास के व्यक्तित्व खास कर उनकी पत्नी अमरावती का एक नया रूप निकल कर सामने आता है और परेशानियाँ और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं। इस कहानी के एक महत्त्वपूर्ण किरदारों में से एक हैं एडिटर साहब राम अमोल पाठक जी, अमरावती के पति | इस अध्याय में कहानी इनके ही इर्द-गिर्द ही घूमती नज़र आएगी। जिनके लिए कहा जा सकता है कि उनकी जिंदगी में अच्छा वक्त करीब 18-19 वर्षों तक रहा और उसके बाद आई परीक्षा की घड़ी यानी कि बुरा वक्त जब उनके आसपास के व्यक्तित्व यानी पर्सनैलिटीज़ का नया रूप उनको देखने को मिला और नए तजुर्बे हुए। इस कहानी की शुरुआत मैं बिल्कुल शुरू से करती हुं, बात जमाने की है जब इंटरनेट की मौजूदगी हमारी जीवन में नहीं के बराबर थी और कविताएं, कहानियां और किताबें हमारे मोबाइल स्क्रीन या लैपटॉप स्क्रीन पर नहीं बल्कि कागज पर छपा करती थीं। 

amravati ke chhave

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पुस्तक के भाग

1

अमरावती चली शहर को

27 सितम्बर 2022
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राम अमोल पाठक जी बिहार के एक गांव के भरे-पुरे परिवार से थे |  गांव में आँगन वाला सबसे ऊँचा मकान राम अमोल पाठक जी का था, घर पर पिताजी,भैया-भाभी, एक प्यारी सी भतीजी और बीवी अमरावती थी, अभी-अभी राम अमोल

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अमरावती पहुंची शहर को

28 सितम्बर 2022
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राम अमोल पाठक जी और अमरावती का सफर ख़त्म होता है और सूरजगढ़ पहुँच जाते हैं | राम अमोल पाठक जी दोनों बैग कंधे पर लटका लेते हैं और ट्रेन से उतर अमरावती से चन्दन को अपनी गोद में ले लेते हैं |

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जुड़ गए दिल के तार अमरावती और कमला के

9 अक्टूबर 2022
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अगली सुबह अमरावती खाने की थाली लौटाने की खातिर भरत मिश्रा और राधा मिश्रा के घर गई | राधा मिश्रा का घर को देखने के बाद, बस देखती ही रह गई | राधा मिश्रा ने उस छोटे से घर को इतनी खूबसूर

4

अमरावती बनी पुरे मोहल्ले की अम्मा 

9 अक्टूबर 2022
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अमरावती का ध्यान घर और बच्चों में बिलकुल नहीं रहता था और इस बात की गवाही घर खुद चीख-चीख कर दे रहा था | कभी कोई चीज़ उसकी सही जगह पर नहीं होती थी और ज्यादातर घर अस्त-व्यस्त ही होता था। कभी-कभी तो

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अमरावती से मुक्ति ही मुक्ति का द्वार है 

9 अक्टूबर 2022
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समय अपनी रफ़्तार में था और देखते-देखते 3-4 बीत गए, पिछले 3-4 सालों से राधा मिश्रा अमरावती के बच्चों को पूरी लगन से ट्यूशन पढ़ाती रही और अमरावती ईष्या और जलन के स्वाभाव के कारण पूरी लगन से&nb

6

अमरावती का छोटा रूप : पूर्णिमा  

9 अक्टूबर 2022
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पिछले मोहल्ले में अमरावती को अपनी कुबुद्धि के इस्तेमाल के लिए बहुत बड़ा साम्राज्य था यानि मोहल्ले की बहुत सी औरतें और बहुत से परिवार | पर नया मकान ऐसे मोहल्ले में था जहाँ अमरावती के लिए दूसरे परिवारों

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