पिछले मोहल्ले में अमरावती को अपनी कुबुद्धि के इस्तेमाल के लिए बहुत बड़ा साम्राज्य था यानि मोहल्ले की बहुत सी औरतें और बहुत से परिवार | पर नया मकान ऐसे मोहल्ले में था जहाँ अमरावती के लिए दूसरे परिवारों में ताका-झांकी के रास्ते बंद थे क्योंकि प्रतिष्ठित मोहल्ला था, प्रतिष्ठित परिवार थे उनके जीने का एक तरीका था, तीज-त्योहारों में ही आपस में मिलते-जुलते थे | इसलिए अब अमरावती का साम्राज्य मोहल्ले से सिमटकर परिवार तक ही रह गया जो आगे जाकर राम अमोल पाठक जी के लिए बड़ी मुसीबत बना |
समय बीतता जा रहा था बच्चे समय के साथ बड़े हो रहे थे, अमरावती राम अमोल पाठक जी को प्रभावित कर चुकी थी और अपने प्रभाव को बनाए रखना चाहती थी, अमरावती ने एक तरीका बना लिया था | वो राम अमोल पाठक जी के सामने अच्छी-अच्छी बातें करती थी पर परिस्थिति और परिवार अपने मुताबिक रखने के लिए अपने बच्चों का पूरा इस्तेमाल करती | अमरावती ने पूर्णिमा को कुछ इस तरह से तैयार किया था कि कभी अमरावती के इशारे मात्र से ही और कभी-कभी बिना किसी इशारे के वो ही करती जो अमरावती उस से करवाना चाहती | अमरावती राम अमोल पाठक जी और बाकि दुनिया के आगे अपनी छवि अच्छी रखना चाहती थी | अमरावती अपनी इच्छाओं को दुनिया के आगे ज़ाहिर नहीं कर सकती थी और उन इच्छाओं को पूरा करने के लिए एक साधन मिल गया था - मंझला बेटा नंदन |
उदाहरण के तौर पर अगर बच्चा पहली बार चोरी करता है और चोरी किया सामान माँ को ला कर दिखाता और माँ बच्चे डांटने बजाय सामान देख कर खुश होती है और है तो मां बच्चे को चोरी करने के लिए प्रेरित करती है और बच्चा चोरी करना सीख जाता है | ठीक इसी तरह अगर बच्चा बुरा व्यवहार करता है और मां बच्चे डांटने के बजाय बच्चे को शाबाशी देती है तो बच्चा बुरा व्यवहार करने के लिए प्रेरित होता है |
बेचारे नंदन के साथ ये ही हो रहा था उसके हर गलत व्यवहार के बाद अमरावती उसकी पीठ थपथपाती,शाबाशी देती और व्यवहार बुरा रखने की प्रेरणा देती | मंझले बेटे नन्दन के ज़िद्दी स्वाभाव का पूरा इस्तेमाल करती, राम अमोल पाठक जी से जब कोई बात मनवाने होती नंदन को राम अमोल पाठक जी के ज़िद और हंगामा करने को उकसाती | एक ओर राम अमोल पाठक जी अपना सुलझा हुआ रूप दिखाती और नंदन के प्रति गुस्सा जताती और दूसरी ओर नंदन को शाबाशी देती और भविष्य में ऐसा करते रहने को प्रेरित करती | समय के साथ अमरावती ने नंदन की सोच-समझ को अपने मुताबिक बना दिया और उसकी हर गलती को सही बना दिया, क्योंकि नंदन का गलत रहना अमरावती के लिए फायदेमंद था | अमरावती ने अपने ही बेटे की ज़िन्दगी अपने स्वार्थ के लिए दिशाहीन बना दी | नंदन की गलत सोच, गलत समझ, गलत संगत, गलत आदतें सब अमरावती के आँखों के आगे थी पर अमरावती ने अपने बेटे को सही रास्ते पर लाने की कोशिश कभी ना की | अमरावती की तेज़ बुद्धि ने सोचा कि नंदन में अगर बुरी आदतें रहेंगी तो कमज़ोरियां रहेंगी, और नंदन में कमजोरयां रहेंगी तो काबू में रखना आसान रहेगा | बस क्या था, अमरावती ने बेटे को बुरी आदतों के साथ पलने छोड़ दिया | और राम अमोल पाठक जी तो अमरावती के नकली रूप से काफी प्रभावित थे,उन्होंने मान लिया था कि अमरावती बच्चों को अच्छे संस्कार दे रही है और निश्चिन्त होकर दफ़्तर के कामों में मशरूफ़ रहे | राम अमोल जी को सच्चाई का पता तब चला जब उनके जीवन में एक तूफ़ान आया |
कई साल बीत चुके थे,राम अमोल पाठक जी के बड़े बेटे चन्दन ने ग्रेजुएशन कर लिया था और अब बैंगलोर में जॉब कर रहा था |
पूर्णिमा तो पूरी तरह से छोटी अमरावती बन चुकी थी, तो अच्छी सोच-समझ और अच्छी सोच-समझ वालों से पक्की दुश्मनी थी | पढ़ाई-लिखे से तो पूर्णिमा की वैसे भी नहीं बनती थी इसलिए अपने पसंदीदा विषय गृह-विज्ञान में BA किया |
मंझला बेटा नंदन 12th की पढ़ाई कर रहा था, अमरावती ने जैसा चाहा अपने बेटे को बिलकुल वैसा बना दिया था | घर-बाहर सबसे बुरा बर्ताव करता और घर आकर खुश होकर अमरावती को किस्से बताता | अमरावती नंदन के किस्से सुन उसकी पीठ थपथपाती |
और छोटा बेटा चम्पक 10वीं की पढ़ाई कर रही थी |
राम अमोल पाठक जी ट्रैन में सफर कर रहे तो बहुत खुश दिखाई दे रहे थे, दरअसल वो अपने गांव से सूरजगढ़ लौट रहे थे |
अचानक ट्रेन रुकी और राम अमोल पाठक जी ने खिड़की से बाहर झांक कर देखा | सूरजगढ़ स्टेशन था इसलिए पाठक जी फटाफट सामन लेकर गए |
दोपहर के 3 बजे हैं, पूरा शांत माहौल है क्योंकि सूरजगढ़ एक छोटा सा स्टेशन है,गिनती के यात्री और कुली स्टेशन पर थे | राम अमोल पाठक जी अपने कंधे पर बैग स्टेशन के मेन गेट से बाहर निकल जाते हैं |
राम अमोल पाठक जी ( ऑटो वाले से ) - भाई सूरज कॉलोनी चलोगे ?
ऑटो वाला ( राम अमोल पाठक जी से ) - अरे एडिटर साहब ! बिलकुल चलूँगा, पर भाड़ा थोड़ा बढ़ गया है ,40 रुपये देने होंगे |
राम अमोल पाठक जी ( ऑटो वाले से ) - ( मुस्कुराकर ) मैं 50 रूपए दूंगा, तुम चलो तो सही |
ऑटो वाला ( राम अमोल पाठक जी से ) - एडिटर साहब आप बड़े खुश दिखाई दे रहे हैं |
राम अमोल पाठक जी ( ऑटो वाले से ) - राजू है ना तुम्हारा नाम ?
ऑटो वाला ( राम अमोल पाठक जी से ) - हाँ साहब !
राम अमोल पाठक जी ( ऑटो वाले से ) - पारखी हो तुम तो | मैं आज वाकई बहुत खुश हूँ | मेरे बेटे की शादी तय हुई है |
ऑटो वाला ( राम अमोल पाठक जी से ) - बहुत-बहुत बधाई एडिटर साहब |
ऑटो रूकती है, राम अमोल पाठक जी ऑटो से नीचे उतरते हैं 50 का नोट ऑटो वाले को पकड़ाते हैं और घर की ओर चल देते हैं |
राम अमोल पाठक जी के घर दाईं तरफ औरतों की मज़लिस लगी थी, कुर्सियां लगाकर अमरावती के संग तीन-चार औरतें बैठी थीं, अम्मा की तरह पूर्णिमा भी ज़मीन पर बैठी थी और नंदन भी एक ओर खड़ा था |
राम अमोल जी के पहुँचते ही औरतों की मज़लिस टूट जाती है, औरतें बाहर की ओर चली जाती हैं | अमरावती ने नंदन की ओर देखा तो नंदन साइकिल पे सवार होकर बाहर चला गया |
अमरावती ( राम अमोल पाठक जी से ) - आप एकदम से अचानक कैसे आ गए ? आप तो सोमवार आने वाले थे |
राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) - बस एक खुशखबरी तो आ गया | वैसे ये औरतें कौन थी पहचाना नहीं |
अमरावती ने पूर्णिमा की तरफ इशारा किया तो पूर्णिमा बोल पड़ी |
पूर्णिमा ( राम अमोल पाठक जी से ) - वो सब्जी मंडी के पास रहती हैं, माँ से पहचान है थोड़ी-बहुत | इधर से गुज़र रही थीं तो थोड़ी देर बैठ गई |
अमरावती ( राम अमोल पाठक जी से ) - खुशखबरी क्या है ?
राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) - हाहाहा ( खुश होकर ) चन्दन की शादी तय हो गई |
अमरावती ( राम अमोल पाठक जी से ) - दहेज़ तय हो गया | कितना दहेज़ दे रहे हैं लड़की वाले |
राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) - ज्यादा दहेज़ क्या करना है बस शादी अच्छे से हो जाए |
अमरावती फिर से पूर्णिमा की तरफ इशारा करती है और पूर्णिमा राम अमोल पाठक जी से कहती है |
पूर्णिमा ( राम अमोल पाठक जी से ) - पता है पापा ! प्रभा के भैया को तो 4-5 लाख दहेज़ में मिल
राम अमोल पाठक जी ( पूर्णिमा से ) - प्रभा के भैया कलेक्टर होंगे | तेरे भैया ने तो अभी-अभी नौकरी की शुरुआत की है, इतना दहेज़ कौन देगा |
अमरावती ( राम अमोल पाठक जी से ) - अभी कुछ साल रुक जाते |
राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) - बेचारा अकेला रहता है, खाने-पीने की परेशानी है, परिवार हो जाएगा तो अच्छा होगा |
अमरावती ( राम अमोल पाठक जी से ) - हाँ ! वो तो है |
अमरावती ( मन ही मन में ) - एडिटर साहब, अक़ल के दुश्मन ! अभी से बहु को बैंगलोर भेजने का मन भी बना लिया |