समय अपनी रफ़्तार में था और देखते-देखते 3-4 बीत गए, पिछले 3-4 सालों से राधा मिश्रा अमरावती के बच्चों को पूरी लगन से ट्यूशन पढ़ाती रही और अमरावती ईष्या और जलन के स्वाभाव के कारण पूरी लगन से राधा के विषय में उल-जुलूल बातें फैलाती रही | पिछले 3-4 सालों के दौरान राधा मिश्रा के किसी शुभचिंतक ने अमरावती की सच्चाई राधा को बता दी | अमरावती की सच्चाई सुनकर राधा मिश्रा की झटका तो ज़रूर लगा फिर भी अपने कर्म से पीछे ना हटी और अमरावती के बच्चों को टूशन पढ़ाती रही |
अब अमरावती का बड़ा बेटा चन्दन कॉलेज जाने लगा था,पूर्णिमा 13 वर्ष की हो चुकी थी,मंझला बेटे नंदन अब 9 साल का था और छोटा बीटा चम्पक 4 -5 साल का था | पूर्णिमा अपनी माँ अमरावती की पक्की शागिर्द बन चुकी थी, माँ के बोलने के पहले ही अपनी माँ अमरावती की मनगढंत कहानियों को मोहल्ले में फैलाने में लग जाती | पूर्णिमा तो माँ को आदर्श मानती ही थी पर अमरावती दिन-रात अपने मंझले बेटे को लेकर घुमा करती थी और माँ के किस्से-कहानियां सुनता रहता | इसलिए पूर्णिमा और नंदन पर अमरावती का पूरा प्रभाव था | और 4 वर्षीय चम्पक दिन-रात अपनी दीदी पूर्णिमा के पीछे-पीछे फिरता रहता क्योंकि उसकी माँ को उसके लिए फुरसत नहीं थी |
एक रोज़ सुबह जब अमरावती ने राधा मिश्रा के घर के फर्नीचर को ट्रक में रखते हुए देखा तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा |
अमरावती ( मन ही मन में ) - (मुस्कुराकर ) शायद मेरे प्रचार-प्रसार ने अपना जादू कर दिया है |
अमरावती (पूर्णिमा से ) - पूर्णिमा ! जरा देख कर आ तेरी राधा मैडम के यहां हो क्या रहा है ?
पूर्णिमा चंपक की ऊँगली पकड़ उसे साथ ले लेती है और राधा के घर खबर से ख़बर लाने पहुँच जाती है |
पूर्णिमा ( राधा मिश्रा से ) - राधा चाची ! चम्पक ने आपके घर के बाहर इतना सामान देखा तो इसे दिलचस्प लगा और आपके घर आने ज़िद करने लगा |
पूर्णिमा ( राधा मिश्रा से ) - मैंने कितना मना किया पर मेरी एक ना सुना क्योंकि इसे आपका सामान देखना था |
राधा मिश्रा ( पूर्णिमा से ) - अच्छा ! चम्पक को सामान देखना था, अच्छा किया ले आई |
और राधा चम्पक के हाथों में एक खिलौना पकड़ाती है |
पूर्णिमा ( चम्पक से ) - क्यों चम्पक ! अब तो खुश हो ? तुमने सारा सामान देख लिया |
चम्पक पूर्णिमा की तरफ देखता है तो पूर्णिमा बोल पड़ती है |
पूर्णिमा (राधा मिश्रा से ) - देखिये राधा चाची आपका सामान देख कर कितना खुश हो रहा है | वैसे राधा चाची सामान गाड़ी में क्यों रखवा रही हैं आप ?
अमरावती ये सब कुछ दूर से देख रही थी पर उसे ख़बर जानने की जल्दी थी, अब उस से सब्र नहीं हो रहा था |
अमरावती ( मन ही मन में ) - ( परेशान होकर बेचैनी से ) पूर्णिमा क्या कर रही है इतनी देर तक ? इस लड़की से तो इतना छोटा -सा काम भी नहीं होता | मुझे खुद ही जाना पड़ेगा |
अमरावती पूरी फुर्ती में राधा के घर की ओर जाती है | भरत मिश्रा और राधा मिश्रा ट्रक में सामान रखवा रहे थे | पूर्णिमा और चम्पक के साथ वहीं खड़ी थी |
अमरावती ( राधा शर्मा से ) - क्या हुआ ! राधा भाभी ! किसी ने कुछ कहा क्या ? आप लोग एकदम से अचानक घर छोड़कर क्यों जा रहे हैं |
राधा शर्मा ( अमरावती से ) - (मुस्कुराकर ) आप जैसा सोच रहीं हैं वैसा तो बिलकुल नहीं है |
अमरावती के चेहरे का रंग उड़ जाता है।
राधा शर्मा ( अमरावती से ) - दरअसल अमरावती भाभी ! मैंने सरकारी स्कूल में टीचर की परीक्षा दी थी, सरकारी टीचर हो गयी हूँ इसलिए जा रही हूँ | मिश्रा जी की भी पटना के एक पब्लिकेशन हाउस में नौकरी लग गई है इसलिए हम पटना जा रहे हैं |
अमरावती ( राधा मिश्रा से ) - अच्छा-अच्छा |
अमरावती ( पूर्णिमा से ) - ( नाराजगी दिखाते हुए ) पूर्णिमा जा घर जा स्कूल नहीं जाना क्या ?
और अमरावती अपने घर लौट आती है |
और उसी शाम राधा मिश्रा और भरत मिश्रा सपरिवार सूरजगढ़ छोड़ कर पटना के लिए रवाना हो जाते हैं और अच्छे कर्मों की वज़ह से राधा मिश्रा को अमरावती से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है |
पर अमरावती राधा शर्मा के जाने के बाद भी अपनी आदतों से बाज़ नहीं आती | राधा मिश्रा के जाने के बाद सबसे यह कहती फिरती है कि राधा मिश्रा की कोई नौकरी-वौकरी नहीं लगी थी, सब लोग उसकी सच्चाई जान गए थे इसलिए सूरजगढ़ से भाग खड़ी हुई |
राधा मिश्रा के जाने के बाद अमरावती को इन किस्से कहानियों में ज्यादा मजा नहीं आ रहा था और अमरावती की ज़िन्दगी सुनी-सी हो गई थी |
एक दिन अचानक गांव से खबर आई कि राम अमोल पाठक जी के दो बड़े भाइयों में से एक नहीं रहे | राम अमोल पाठक जी को बिचारी भाभी और भतीजी की चिंता लगी रहने लगी | राम अमोल पाठक जी ने जल्द ही अपनी भतीजी की शादी तय करवाई और शादी की तैयारी में जुट गए जो कि अमरावती को कतई मंजूर नहीं था |
और एक बार फिर शुरू हुआ अमरावती के झूठे किस्से-कहानियों का सिलसिला | कभी पूर्णिमा के माध्यम से तो कभी नंदन के माध्यम से राम अमोल पाठक जी को उनकी भाभी और भतीजी के विषय में झूठे किस्से-कहानियां सुनाती और आख़िरकार तो खुद भी खुलकर सामने आ गई |
अब अमरावती राम अमोल पाठक जी से खुल कर बातें करने लगी थी, सही तरीके से कहा जाए तो अब राम अमोल पाठक जी को भी मनगढ़ंत कहानियां सुनाने लगाई थीं, सिर्फ सुनाने नहीं लगी थी बल्कि प्रभावित भी करने लगी थी | अमरावती की कहानियां कुछ इस तरह की होती कि राम अमोल पाठक जी को उनकी भाभी दोषी और अमरावती बिचारी लगने लगी थी | राम अमोल पाठक अपने फ़र्ज़ से तो नहीं चुके, भतीजी की शादी करवा दी, पर अमोल पाठक जी अमरावती से प्रभावित थे इसलिए बिचारी भाभी को उनके ही हाल पर छोड़ दिया |
राम अमोल पाठक जी को अपनी झूठी कहानियों से प्रभावित करने के बाद अमरावती का दिमाग सातवें आसमान पर पहुँच गया था | अब राम अमोल पाठक जी के ज़हन में अमरावती एक सुलझी हुई औरत थी |
एक दिन राम अमोल पाठक जी के दफ्तर से खबर आई कि प्रकाश पब्लिकेशन की ओर से राम अमोल पाठक जी को बड़ा मकान दिया जा रहा है | और जल्द ही पूरा परिवार नए मकान में रहने को चला गया | तीन कमरे का आँगन वाला बड़ा सा मकान था और चारो तरफ ज़मीन थी वहां पहुंचकर तो अमरावती घमंड से तन गई थी | राम अमोल पाठक जी अमरावती के बदलते रूप को बिलकुल अनजान थे और उन्हें भविष्य में इसी बात की भरपाई करनी पड़ी |