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जुड़ गए दिल के तार अमरावती और कमला के

9 अक्टूबर 2022

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अगली सुबह अमरावती खाने की थाली लौटाने की खातिर भरत मिश्रा और  राधा मिश्रा के घर गई |  राधा मिश्रा का घर को देखने के बाद, बस देखती ही रह गई |  राधा मिश्रा ने उस छोटे से घर को इतनी खूबसूरती से सजाया था कि कोई भी अगर उसके घर को देखता तो  मोहित हो ही जाता । राधा मिश्रा का घर देखकर अमरावती की आंखें खुली की खुली रह गई | 

 

अमरावती ( राधा मिश्रा से ) -  भाभी जी ! आपकी थालियां लाई हूं, आपका घर तो बहुत खूबसूरत है | 

 

राधा मिश्रा ( अमरावती से ) - अमरावती भाभी ! आप तो देख ही रही है यहां घर कितने पास-पास बने हुए हैं, यहां औरतें एक दूसरे के घर में  झांकती रहती हैं | औरतों के संग बैठो तो एक-दूसरे की निजी ज़िन्दगी पर टिपण्णी करती रहती हैं, इन सब बातों में मेरा मन नहीं लगता इसलिए मैं घर पर ही रहती हूँ और घर सजाना मुझे बहुत पसंद है | एक और बात बताऊं अभी हमारे घर में नन्हा मेहमान भी आने वाला है | 

 

अमरावती ( राधा मिश्रा से ) -  बहुत-बहुत बधाई ! आपको | 

 

अमरावती घर लौट दोपहर का भोजन तैयार कर रही थी तभी दरवाजे पर खटखट की आवाज आई | दरवाजा खुला था तो दरवाजा को अंदर धक्का देकर एक महिला दरवाजे पर खड़ी थी और अंदर की ओर झांक कर अमरावती को आवाज दी | 

 

झांकती हुई महिला ( अमरावती से ) - भाभी जी मैं आपकी पड़ोसन हूँ | क्या अंदर आ सकती हूँ |

 

अमरावती ( मन ही मन में ) - जिसको देखो मुंह उठाकर अंदर चला आता है, एडिटर साहब कौन से  अनोखे शहर में लेकर आए हैं |  

 

अमरावती ( गेस्ट महिला से ) - हाँ-हाँ,आइए | 



कमला ( अमरावती से ) -  अच्छा बेटा जी भी हैं | 

 

और कमला अमरावती के बेटे को गोद में लेकर प्यार करती है | 

 

गेस्ट महिला ( अमरावती से ) - मैं कमला, मैं इस मोहल्ले की सबसे मशहूर महिला  हूं, नाम तो मेरा कमला है कमला शर्मा कसम मुझे अखबार मैडम के नाम से जानते हैं | 



अमरावती ( कमला से ) -  मैं कुछ समझी नहीं  ? 

कमला ( अमरावती से ) -  इस मोहल्ले की अच्छी-बुरी सारी खबरें मेरे पास होती हैं, इसलिए मोहल्ले वालों ने मेरा नाम अखबार मैडम रखा है | एक बात बताऊँ,आपकी जो ठीक बगल में जो घर है ना भरत मिश्रा जी का,उनकी बीवी बड़ी खड़ूस हैं,कभी भी औरतों की मण्डली में नहीं बैठती | दिन भर बस घर में घुसी रहती है | 

 

कमला ( अमरावती से ) - दरअसल औरतों की एक चुगली मण्डली है, किसका-किससे झगड़ा हुआ, झगडे में क्या-क्या बोला गया, किसकी-किससे दोस्ती हुई, किस-किस के घर में क्या चल रहा है | सारे विषयों पर विस्तार में बातें होती हैं, बड़ा मज़ा आता है | 

 

बस फिर क्या था मानो  इन दोनों औरतों के दिल के तार जुड़ गए | 

 

अब अमरावती घर  पर कम और ज्यादातर  कमला के संग मोहल्ले में घूमा करती थी |  राधा मिश्रा  के पास अपने बेटे को छोड़ देती यह कहकर कि ऐसे समय में बच्चे का साथ रहना बहुत अच्छा होता है | 

 

एक रोज जब पूरे मोहल्ले से घूम-फिर अमरावती की शाम में अपने बेटे को लेने राधा मिश्रा के घर पहुंची तो राधा बोल पड़ी | 

 

राधा मिश्रा ( अमरावती से ) -  ( हिचकिचाते  हुए )  अमरावती भाभी ! एक बात बोलूं बुरा तो नहीं मानेंगी ?

 

अमरावती ( राधा मिश्रा से ) - ( असमंजस में )  हां बोलिए | 

 

राधा मिश्रा ( अमरावती से ) -  आपके लिए कमला की संगत ठीक नहीं है,अच्छे परिवार से नहीं है उसके संस्कार भी ठीक नहीं हैं | उसके साथ आप का घूमना-फिरना ठीक नहीं है | 

 

अमरावती (राधा मिश्रा से ) - ( एकदम से अचानक )  मैं चलूंगी, एडिटर साहब आते ही होंगे।

 

अमरावती ( मन ही मन में ) - ( नाराज होकर )  बड़ी आई राधा मिश्रा ? अपनी शक्ल कभी देखी है आईने में ? आई, मुझे आई है सिखाने | 

 

अमरावती  चंदन को साथ लेकर अपने घर लौट जाती है, थोड़ी देर बाद एडिटर साहब यानि राम अमोल पाठक जी भी ऑफिस से घर आ जाते हैं।

और आते ही एडिटर साहब भाँप लेते हैं कि घर का माहौल थोड़ा गर्म है | क्योंकि रसोई से  बर्तन पटकने की काफी आवाजें आ रही थीं | 

जब अमरावती राम अमोल पाठक  जी  के लिए रात का खाना लेकर जाती है राम अमोल पाठक जी से रहा नहीं जाता है पूछ बैठते हैं ।

 

राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) -  क्या बात है चंदन की मां, नाराज लगती हो बर्तन  इतनी आवाज रोज तो नहीं आती ? 

 

अमरावती ( राम अमोल पाठक जी से ) -  मुझे मिश्रा जी के यहां जाना पसंद नहीं है और ना ही चंदन को भेजना | 

राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) - ( मुस्कुराते हुए ) हाँ-हाँ  बिल्कुल तुम्हारी मर्जी है, जो ठीक लगे वही किया करो | 

 

अगली सुबह से अमरावती कमला  के साथ मोहल्ले में भटकना तो नहीं छोड़ती पर अब अपने साथ अपने बेटे को भी लेकर जाया करती थी।

अगली सुबह अमरावती कमला से  राधा मिश्रा का मजाक उड़ाने के लहजे में बात करती है |  

अमरावती  ( कमला से ) -  ( मजाक उड़ाते हुए ) कल राधा रानी ( राधा मिश्रा) मुझे कुछ सिखा रही थी | 

कमला ( अमरावती से ) - ( मजाक उड़ाते हुए ) क्या सिखा रही थी  राधा-रानी ( राधा मिश्रा ) ?

अमरावती ( कमला से ) - ( मजाक उड़ाते हुए ) राधा रानी ( राधा मिश्रा) कह रही थी कि मेरा तुम्हारे साथ मोहल्ले में घूमना-फिरना ठीक नहीं है | 

 कमला ( अमरावती से ) - ( हंसकर )  उसे क्या पता कि बाहर घूमने में  जो मजा है वो घर में घुसे रहने में नहीं | और फिर अमरावती और कमला तेज-तेज हंसने लगती हैं ।

अमरावती और कमला  - हा हा हा हा हा

 

एक रोज भरत मिश्रा जी दफ्तर से लौट रहे थे, अपनी पड़ोसन भाभी अमरावती जी को कमला के संग देखकर चिंता में पड़ जाते हैं और घर आकर अपनी पत्नी राधा से कहते हैं | 

भरत मिश्रा जी ( अपनी बीवी राधा से ) -  राधा, अमरावती भाभी कमला के साथ में क्या कर रही थीं ? 

राधा  मिश्रा ( अपने पति भरत मिश्रा जी से ) - दो-तीन महीने से दोनों पक्की सहेलियां हैं | 

भरत मिश्रा जी ( अपनी बीवी राधा से ) -  तुमने उन्हें समझाया नहीं, बताया नहीं  कि यह  कमला उर्फ़ अखबार मैडम से के साथ उठना-बैठना ठीक नहीं | 



राधा  मिश्रा ( अपने पति भरत  मिश्रा जी से ) - अमरावती भाभी को मैंने  बताने की कोशिश की थी पर उन्होंने बुरा मान लिया  तब से हमारे घर आना भी छोड़ दिया | 

भरत मिश्रा जी ( अपनी बीवी राधा से ) राम अमोल पाठक जी बड़े सज्जन इंसान हैं, सच बताना जरूरी है उनको, मैं  बताऊंगा जरूर | 

भरत मिश्रा जी राम अमोल पाठक जी के घर जाकर उनसे मिलते हैं, घर के बाहर उनकी बहुत देर तक बात होती है ।

 

लौटकर राम अमोल पाठक जी अमरावती से कहते हैं।

 

राम अमोल पाठक जी ( अमरावती से ) - मैंने सुना है कि कमला शर्मा कुछ ठीक-ठाक नहीं है, तो उसका घर में आना-जाना ज्यादा मत होने दिया करो | 

 

अमरावती ( राम अमोल पाठक जी से ) -  हाँ  ठीक है, आती है कभी-कभी, आगे से नहीं आएगी | 

 

अमरावती ( मन ही मन में ) -  अच्छा तो मिश्रा जी एडिटर साहब के कान में  कमला की बात फूंकने आए थे, मिश्रा जी मियां-बीवी दोनों के दोनों पागल हैं | 

 

अमरावती अब चाहती थी  कि उसकी सहेली कमला वाली बात राम अमोल पाठक जी तक ना पहुंचे इसलिए वो मोहल्ले में चाहे जितना भी भटके राम अमोल पाठक जी के घर लौटने से पूर्व घर  लौट जाया करती थी। और यह सिलसिला लंबे समय  तक पहले महीनों और फिर  सालों तक चलता रहा राम अमोल पाठक जी के दफ्तर जाने के बाद कमला के साथ पूरे दिन दूसरों के परिवारों में ताका-झांकी करती, चुगलियां  करती ना बच्चे का ध्यान ना घर का | 

समय अपनी रफ्तार में था समय के साथ राम अमोल पाठक जी का  परिवार बड़ा होता  गया, राम अमोल पाठक जी के घर में एक बेटी पूर्णिमा  पैदा हुई जो अब करीब 4 साल की थी और अभी-अभी एक बेटा पैदा हुआ जिसका नाम इन लोगों ने नंदन रखा मिश्रा जी के यहां भी अब  दो बच्चे थे और कमला तीन बच्चे थे | 

 

अमरावती में घर के छोटे-मोटे काम में पूर्णिमा को लगा दिया करती और खुद कमला के संग पूरे मोहल्ले की चिंता में लगी रहती।

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रचनाएँ
अमरावती के छलावे
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"अमरावती के छलावे" यह कहानी पूर्णतया काल्पनिक है और इसके हर पात्र भी काल्पनिक हैं | "अमरावती के छलावे" कहानी है अनोखी किरदार अमरावती के जीवन से जुड़े किरदारों के जीवन यानि जिंदगी की | जिंदगी की बात की जाए तो जिंदगी में वक्त आमतौर पर दो रूपों में आता है-एक तो अच्छा वक्त और दूसरा बुरा वक्त। अच्छे वक्त की कोई खास परिभाषा नहीं है पर सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा होता है और बुरा वक्त, इसी कई परिभाषाएँ हैं उनमें से एक है परीक्षा की घड़ी। जिस समय हमारे आसपास के व्यक्तित्व खास कर उनकी पत्नी अमरावती का एक नया रूप निकल कर सामने आता है और परेशानियाँ और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं। इस कहानी के एक महत्त्वपूर्ण किरदारों में से एक हैं एडिटर साहब राम अमोल पाठक जी, अमरावती के पति | इस अध्याय में कहानी इनके ही इर्द-गिर्द ही घूमती नज़र आएगी। जिनके लिए कहा जा सकता है कि उनकी जिंदगी में अच्छा वक्त करीब 18-19 वर्षों तक रहा और उसके बाद आई परीक्षा की घड़ी यानी कि बुरा वक्त जब उनके आसपास के व्यक्तित्व यानी पर्सनैलिटीज़ का नया रूप उनको देखने को मिला और नए तजुर्बे हुए। इस कहानी की शुरुआत मैं बिल्कुल शुरू से करती हुं, बात जमाने की है जब इंटरनेट की मौजूदगी हमारी जीवन में नहीं के बराबर थी और कविताएं, कहानियां और किताबें हमारे मोबाइल स्क्रीन या लैपटॉप स्क्रीन पर नहीं बल्कि कागज पर छपा करती थीं।
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