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कभी उनका कभी अपने दिल का क़रार लिखते हैं ..! अहसास एक सा ही है सब जिसे बार बार लिखते हैं ..! ख़ुद की ही नही औरों की दास्ताँ भी रहती है शायद कहीं.. मरहम सा लगे जो ज़ख्मों पे ..हम ऐसे भी आशार ल
ज़िंदगी जो निकल गयी हाथों से उसे लौटा लाने का कोई तरीक़ा ही नही ..! उम्र गुज़र जाने को है रफ़्ता रफ़्ता लेकिन .. जीने का स्लीका अब तक सीखा ही नही ..! ज़िंदगी की गर्द ने मेरा चेहरा ही छुपा दिया ..
यादों के संदूक में .. मेरे कुछ ख़ाब पड़े हैं ..! छू के उसने जो नवाज़े थे कभी .. चंद वो सूखे ग़ुलाब पड़े हैं ..! ख़ुशी ग़म के वो गुणा जमा .. गुज़रे लम्हों के कई हिसाब पड़े हैं..! कभी खोल के दिल ह
दिल के इक कोने में .. दबी सी ख़वाँईशें बहुत हैं ..! तू लाख़ सितम कर ले ऐ ज़िंदगी .. क्या करें कि तुझसे मोहब्बतें बहुत हैं..! ज़िंदा तो वैसे भी मरने के लिए हैं ही .. चाहो तो ज़िंदगी जीने के तरीक़
किसे फ़ुरसत है कि सुने दास्ताँ हमारी .. दस्तूरन ही लोग हाल पूछ लिया करते हैं..! कभी गले मिलते थे फिर हाथ मिलने लगे .. आज ये दौर है दूर ही से हाथ जोड़ दिया करते हैं ..! यूँ तो करते हैं ख़ुशामदी बड़
ज़िंदगी क्या है बस मीठा सा इक ज़हर है ..! रोज़ ही बनते बिगड़ते जी रहा है इन्सा .. कभी साँझ है ख़ाबो की तो कभी सहर है ..! सब कुछ मिला पर शायद कुछ मिला भी नही .. इक तलाश सी जाने क्या रहती हर पहर है
सफ़र अकेले करना है.. कुछ दुआयें लिए चलना.. साथ फूलों की महक थोड़ी .. ज़रा मासूम सी हंसी .. आँख में नमी शबनम सी .. बस यूँ हो सफ़र की त्यारी अपनी .. दूर कहीं सितारों से आगे साथी है घर शायद .. ब
लम्हे जो बीत गये .. संजो लिए मैंने .. कुछ हर्फ़ों में .. कुछ दिल की .. नर्म तहों में .. उन तनहा .. दिनों के लिए .. जब इन्हें ओड़ के .. सुख की नींद .. सो जाएँगे ..!
ख़्वाब कुछ टूटे हुए .. कुछ ज़ख़्म रिसते हुए .. हर्फ़ कुछ पन्नों पे बिखरे हुए .. यादों के सूखे चंद फ़ूल .. बस ऐसा ही कुछ समान.. मिलेगा विरासत में मेरी ..!
उधड़ गयी इक दिन यादों की रजाई.. लब सिल लिए कि ना हो प्यार की रुसवाई .. मन मीत मिला था पर निकला वो हरजाई.. लहरें शोर करती रही सागर का दर्द हवा भी ना सुन पायी .. अश्क़ों का पानी भी लगता है चोट पे ..