ज़िंदगी जो निकल गयी हाथों से
उसे लौटा लाने का कोई तरीक़ा ही नही ..!
उम्र गुज़र जाने को है रफ़्ता रफ़्ता लेकिन ..
जीने का स्लीका अब तक सीखा ही नही ..!
ज़िंदगी की गर्द ने मेरा चेहरा ही छुपा दिया ..
आईने में वो अक्स अपना फिर दिखा ही नही ..!
चोट जो जो खाई मोहब्बत के नाम पे हमने ..
ज़ख़्म वो दिल से आज तक मिटा ही नही ..!
बातों में क़रार ही खो गया फिर तकरार क्या ..
बहुत दिन हुए अब हाले दिल कहा ही नही ..!
कभी बोल भी दें अगर ये आँखे फ़साना मेरा ..
महसूस होता है जैसे उसने कुछ सुना ही नही ..!
कट गया अब तक तो आगे भी गुज़र ही जाएगा ..
बीत गया जितना वक़्त इतना तो अब बचा भी नही ..!
देख लिए ज़िंदगी तेरे अंधेरे उजाले क़रीब से ..
रंग अब तेरा कोई मुझ से छिपा ही नही ..!