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<p>छोटी सी ये ज़िंदगी ..</p> <p>उससे भी छोटा मन ..</p> <p>पर विचारों का अथाह समंदर</p> <p>कभी ख़ु
साज़ दिल के यूँ ही तो नहीं बजा करते ... कि.. धड़कन की तारों पर मोहब्बत की उँगलियाँ छिला करती हैं...।
जज़बात दिल के अनमोल हैं दोस्त .. ओर बस्ती ज़ालिमों की .. तो ज़ुबां पे भी ताले लाज़मी है यहाँ..।
जब ज़िंदगी उलझ जाए तो कुछ ऐसा कीजिए .. अश्क़ों के ताप से इस पत्थर दिल को पिघला दीजिए ..! औरों की हंसी से कर अपने ग़म की दवा सब्र का प्याला ले घूँट घूँट पीजिए ..! बंदों के बनाए ख़ुदा तो बहुत ह
मेरी नज़्म अधूरी है .. बड़ी लम्बी उम्र है ज़ख्मों की यहाँ .. फिर भी शिकवा कहाँ ज़रूरी है ..! मर के भी जी गये हम .. इनायत ख़ुदा की .. दफ़ना डालने को मग़र .. दुनियाँ की कोशिश पूरी है ..!
रात बुला ले जाती है दूर क़हीं तारों के पास … सुरमयी सपनों के संग , कुछ पल बिताने को ..! चाँद से गले मिल के . चंद ग़म हल्के हो जाते हैं..! फिर रात के आग़ोश में , सुनहरे खाबों से लिपट के , थकी
सारी बस्ती हुई क़ातिलों की.. है कोई जो किसी के लिए दुआ कर दे ..! मरे ज़मीरों में कोई साँस फूँक दे , ओर फिर से इंसानों को ज़िंदा कर दे …! सहमा सा फिरता है हर शख़्स यहाँ, मुस्कुरा उठे य
हर दिन के अंत में जब घर का रुख़ करते हैं परिंदे , परवाज़ में इक थकान नज़र आती है ..! कोई राह देखता होगा क़हीं कोई आवाज़ बुलाती है ..! सुबह की चहचहाहट और साँझ को ढलती ख़ामोशी .. इस शामोंसहर मे
मौन की आवाज़ .. सुनाई सब को देती है .. ये और बात है लेकिन .. अनसुना करता है हर कोई .. घबराते हैं लोग कहीं सच .. का सामना ना करना पड़े ..!
उधड़ गयी इक दिन यादों की रजाई.. लब सिल लिए कि ना हो प्यार की रुसवाई .. मन मीत मिला था पर निकला वो हरजाई.. लहरें शोर करती रही सागर का दर्द हवा भी ना सुन पायी .. अश्क़ों का पानी भी लगता है चोट पे ..
ख़्वाब कुछ टूटे हुए .. कुछ ज़ख़्म रिसते हुए .. हर्फ़ कुछ पन्नों पे बिखरे हुए .. यादों के सूखे चंद फ़ूल .. बस ऐसा ही कुछ समान.. मिलेगा विरासत में मेरी ..!
लम्हे जो बीत गये .. संजो लिए मैंने .. कुछ हर्फ़ों में .. कुछ दिल की .. नर्म तहों में .. उन तनहा .. दिनों के लिए .. जब इन्हें ओड़ के .. सुख की नींद .. सो जाएँगे ..!
सफ़र अकेले करना है.. कुछ दुआयें लिए चलना.. साथ फूलों की महक थोड़ी .. ज़रा मासूम सी हंसी .. आँख में नमी शबनम सी .. बस यूँ हो सफ़र की त्यारी अपनी .. दूर कहीं सितारों से आगे साथी है घर शायद .. ब
ज़िंदगी क्या है बस मीठा सा इक ज़हर है ..! रोज़ ही बनते बिगड़ते जी रहा है इन्सा .. कभी साँझ है ख़ाबो की तो कभी सहर है ..! सब कुछ मिला पर शायद कुछ मिला भी नही .. इक तलाश सी जाने क्या रहती हर पहर है
किसे फ़ुरसत है कि सुने दास्ताँ हमारी .. दस्तूरन ही लोग हाल पूछ लिया करते हैं..! कभी गले मिलते थे फिर हाथ मिलने लगे .. आज ये दौर है दूर ही से हाथ जोड़ दिया करते हैं ..! यूँ तो करते हैं ख़ुशामदी बड़
दिल के इक कोने में .. दबी सी ख़वाँईशें बहुत हैं ..! तू लाख़ सितम कर ले ऐ ज़िंदगी .. क्या करें कि तुझसे मोहब्बतें बहुत हैं..! ज़िंदा तो वैसे भी मरने के लिए हैं ही .. चाहो तो ज़िंदगी जीने के तरीक़
यादों के संदूक में .. मेरे कुछ ख़ाब पड़े हैं ..! छू के उसने जो नवाज़े थे कभी .. चंद वो सूखे ग़ुलाब पड़े हैं ..! ख़ुशी ग़म के वो गुणा जमा .. गुज़रे लम्हों के कई हिसाब पड़े हैं..! कभी खोल के दिल ह
ज़िंदगी जो निकल गयी हाथों से उसे लौटा लाने का कोई तरीक़ा ही नही ..! उम्र गुज़र जाने को है रफ़्ता रफ़्ता लेकिन .. जीने का स्लीका अब तक सीखा ही नही ..! ज़िंदगी की गर्द ने मेरा चेहरा ही छुपा दिया ..
कभी उनका कभी अपने दिल का क़रार लिखते हैं ..! अहसास एक सा ही है सब जिसे बार बार लिखते हैं ..! ख़ुद की ही नही औरों की दास्ताँ भी रहती है शायद कहीं.. मरहम सा लगे जो ज़ख्मों पे ..हम ऐसे भी आशार ल