किसे फ़ुरसत है कि सुने दास्ताँ हमारी ..
दस्तूरन ही लोग हाल पूछ लिया करते हैं..!
कभी गले मिलते थे फिर हाथ मिलने लगे ..
आज ये दौर है दूर ही से हाथ जोड़ दिया करते हैं ..!
यूँ तो करते हैं ख़ुशामदी बड़ी महफ़िलों में ..
गमगीं हो कोई तो मुँह मोड़ लिया करते हैं..!
फुर्कत मिले तो सोचना ज़रा ये कैसा सफ़र है ..
इस जमीं के लोग क्या ऐसे ही जिया करते हैं..!