दिल के इक कोने में ..
दबी सी ख़वाँईशें बहुत हैं ..!
तू लाख़ सितम कर ले ऐ ज़िंदगी ..
क्या करें कि तुझसे मोहब्बतें बहुत हैं..!
ज़िंदा तो वैसे भी मरने के लिए हैं ही ..
चाहो तो ज़िंदगी जीने के तरीक़े बहुत हैं..!
ज़ुल्म कर के जो थक जाओ तो बता देना ..
फुर्सत से रो लेंगे कि हम यूँ तो हंसते बहुत हैं..!