यादों के संदूक में ..
मेरे कुछ ख़ाब पड़े हैं ..!
छू के उसने जो नवाज़े थे कभी ..
चंद वो सूखे ग़ुलाब पड़े हैं ..!
ख़ुशी ग़म के वो गुणा जमा ..
गुज़रे लम्हों के कई हिसाब पड़े हैं..!
कभी खोल के दिल हवा लगवा देती हूँ ..
सीले से कोई जैसे लिहाफ़ पड़े हैं..!
वक़्त की रंजिशों से सीखा है साहब ..
सुनो तो तजुर्बे बेहिसाब पड़े हैं..!