उधड़ गयी इक दिन यादों की रजाई..
लब सिल लिए कि ना हो प्यार की रुसवाई ..
मन मीत मिला था पर निकला वो हरजाई..
लहरें शोर करती रही सागर का दर्द हवा भी ना सुन पायी ..
अश्क़ों का पानी भी लगता है चोट पे ..
अब तो सिल दो ये ज़ख़्म मेरा ..ऐ ज़िंदगी ..
कर दो फटे पुराने दिनों की तरूपाई…!