आज भी सुनीता और मोहन अंखियो के झरोखो से एक दूसरे से बाते किया करते हैं। वक्त कैसे पंख लगाकर उड़ जाता है, पता ही नहीं चलता। सुनीता और मोहन एक दूसरे को आज भी उतना ही चाहते हैं जितना पहले चाहा करते थे, पर समाज के डर से कभी एक नहीं हो पाएं। कारण जातियों का अलग होना। एक ठाकुर तो दूसरा ब्राह्मण। परिवार वालो ने भी साथ नहीं दिया। दोनो ने कसम खाई कि बिना परिवार के आशीर्वाद के विवाह बंधन में नही बंधेगें। पर एक कसम ये भी खाई कि एक दूसरे के अतिरिक्त किसी और का हाथ भी नहीं थामेगें। सुनीता और मोहन का रिश्ता बेशक पति पत्नी का नहीं बन पाया परंतु आज वे दोनो एक दूसरे के अच्छे मित्र हैं। एक ऐसा रिश्ता दोनो के बीच बन चुका है जो अंखियो के झरोखो से शुद्ध व पवित्रता लिए हुए है।