पिता के ख़त
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पापा, मुझे आज भी याद हैं,
आपके लिखें वो ख़त।
जो आप मुझे लिखा करते थे,
जब मैं रहती थी हॉस्टल में।
पापा उस समय मोबाइल नहीं था।
ख़तो से ही काम चलाना पड़ता था।
एक सप्ताह में ख़त आया करता था,
पर ख़त हाथ में आते ही
हज़ारों खुशियाँ दे जाता था।
कितने अच्छे दिन थे वो,
आपके ख़तों का इंतज़ार करना।
फिर मेरा ख़त का जवाब लिखना,
बहुत सुहाने दिन थे,
आज आप नहीं हो पास पर
आज भी यादें साथ हैं आपकी।
पापा आपकी दी हुई शिक्षा और ज्ञान,
मेरा हौंसला बढ़ाते हैं।
जीवन में आगे बढ़ते रहने का ,
सही मार्ग मुझे दिखाते है।
लगता है जैसे बात हो कल ही की।
माना समय बदल गया है पर
यादों का सफर नहीं बदलेगा कभी।
यादें अपनी रफ्तार से धीरे -धीरे
बढ़ती रहेगीं आगें।
पापा आप हमेशा कहा करते थे,
मनुष्य को जीवन में कुछ ना कुछ,
अवश्य लिखते रहना चाहिए।
जब भी मिले समय तो
कलम का इस्तेमाल करना चाहिए।
ख़त हमारे जीवन का हिस्सा है,
ख़त हमारी यादों को समेटकर रखते हैं।
जो हमे हमारी यादो से मिलवाते रहते हैं।
शाहाना परवीन...✍️