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अंशुल अर्च के बारे में

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अंशुल अर्च की पुस्तकें

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अंशुल अर्च के लेख

रंग

23 जून 2016
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~रंग ~मलूकदासजी कहते----------------------सुंदर देही देखि कै, उपजत है अनुराग।मढ़ी न होती चाम की, तो जीवन खाते काम।।अर्थात्‌: ‘‘मनुष्य का स्वभाव है कि वह किसी भी सुंदर शरीर को देखकर उससे प्रीति करने को लालाचित होने लगता है जबकि इसमें मांस, खून और हड्डी भरे हुए हैं। अगर इस कचड़े के ऊपर यह देह न ह

सोचती हूं..

17 जून 2016
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कभी सोचती हूं.. क्या होता अगर माता सीता ने साफ-साफ मना कर दिया होता अग्नि-परीक्षा देने से! क्या होता अगर सावित्री लड़ने नही जाती, यमराज से अपने पति के प्राण वापस लाने.. क्या होता जो कुन्ती छोड़ नही जाती कर्ण को.. शुद्र कहलाने.... क्या होता अगर द्रोपदी वगावत कर देती,शर्त में हार जाने वाली संपत्त

डिग्री

16 जून 2016
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Today 

~अर्थ~

16 जून 2016
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कला..इसका अर्थ होता है, बिना किसी स्वार्थ और बनावटीपन के, अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति। ऐसा मेरा जवाब था.. जब किसी बहुत ही पहुंचे हुए कलाकार ने मुझसे पूछा था, के बताओ तुम्हारी नजर में कला क्या है।लेकिन फिर उन्होने मुझे कला का सही अर्थ कुछ यूं समझाया के...जिसमें समाज का हित हो,जो लोगो के काम आये.. किसी

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