दो दिलों का मेल है विवाह,
सिर्फ़ तन का नहीं मन का भी मेल है विवाह,
जीवन भर जहाँ एक दूजे के साथ हो निबाह,
बस वही एक पवित्र बंधन है विवाह,
चाहे परिवार की सम्मति से हो चाहे हो प्रेम विवाह,
दोनों ही दशा में समझौता है जरुरी,
जहां मन से मन की न हो दूरी,
जहां हमसफ़र करे एक दूसरे की ख़्वाहिश पूरी,
एक दूजे को दे पूरा सम्मान,
कभी न करे किसी गैर के सामने अपमान,
बुढ़ापे तक साथ दे जो हमसफ़र,
प्यार से कट जाती है फिर जीवन की डगर,
करना पड़ता है एक दूजे के परिवार का भी सम्मान,
इस रिश्ते में नहीं होना चाहिये अभिमान,
जहां हो एक दूजे के परिवार के साथ भी निबाह,
दो आत्माओं का वह पवित्र बन्धन है विवाह।
-kajal