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गांव की सुन्दर बालिका 

13 अगस्त 2022

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गांव की सुन्दर बालिका 
प्यारा-सा नाम सारिका, 

ये कविता उसकी कहानी है
जो मुझे आपको सुनानी है,

कहानी का पहला चरण है 
सूरज और उमा का आँगन है,

एक कमरे में प्रसव-पीड़ा से 
उमा आज बेचैन सी है,

आँगन के एक कोने में
सूरज खड़े मौन से हैं,

तीन पुत्रों को पाकर माँ   
उमा तो अति हर्षित  है,

और इस बार पुत्री की माँ 
बनने को लालायित है,

सहसा दाई मां कमरे से बाहर आई है
सूरज की खातिर खुशखब लाई है,

नटखट,आठ बरस की सारिका 
तीनों भाइयों की जान है,

नखरीली,बारह बरस की सारिका
पिता सूरज की प्राण है ,

सुन्दर, सोलह बरस की सारिका 
माँ उमा की पहचान है,

सारिका जब-जब  मुस्काती है 
गांव की नदियां भी लहराती हैं,

सारिका जब खिलखिलाए तो
कलियाँ फूल बन जाती हैं,


ज्यों सारिका बारहवीं उत्तीर्ण हुई
त्यों ब्याह की योग्यता परिपूर्ण हुई,

होली त्योहार के शुभ मौके पर
एक सम्बन्धी घर पर आए हैं, 

प्रयोजन है बड़ा है खास-सा 
सारिका की खातिर रिश्ता लाए हैं, 

आँगन सजा है सुन्दर फूलों से 
मानों आज त्यौहार हो कोई,

सखियों ने रचाई हाथों में मेहंदी
और राजकुमारियों-सा सजा दिया,

 कन्या-दान की रस्म हुई अदा  
और डोली में बिठा विदा किया ,

पिछला सब पीछे छूट गया
नई राह पर चल दी सारिका, 

माँ का आँगन क्या छूट गया 
मानों भाग्य ही रूठ गया, 

राहगीर, जीवन के साथी ने 
उसका ऐसा साथ दिया है,

आंसुओं का ही साथ मिला है 
हंसना-मुस्काना सब छूट गया, 

आँखों में आंसू , होठों पर हंसी  
मन की पीड़ा बस मन में थी,

वक्त संग सब बदल जाएगा  
एक ही आस ज़हन में थी, 

बस उम्मीद का दामन थामे 
सारिका बरसों बिता रही है, 

दो बच्चों की माँ सारिका 
जीवन यूँ ही जिए जा रही है, 

एक रोज़  सारिका के हाथों से 
उम्मीद का दामन भी छूट गया,
 
आखिरी बार दिल धड़का 
और जीवन से रिश्ता टूट गया, 


गांव की सुन्दर बालिका 
प्यारा-सा नाम सारिका | 
-तीषु सिंह

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