प्रकृति प्रदत्त सुंदरता को शब्दों में उतारना और प्रकृति विरोधी वारदातों पर आवाज उठाना मेरी फितरत है।
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एक ख्वाहिश थी उसके साथ सावन में भीग जाने की, भीगते उसके यौवन को एकटक निहारने की, सुर्ख होंठों से टपकती बूँदों को पीकर, एक ख्वाहिश थी उसकी बाँहों में खो जाने की।। ©अरुण यादव
फाल्गुनी गीतों से हर्षित तन-मन हो गया, खिले फूल सरसों के जर्रा-जर्रा चमन हो गया, अबकी होली में इस कदर शरारत की रंगों ने तुमसे, तुम्हारी जुल्फें लग रही थी घटा इन्द्रधनुष तुम्हारा बदन हो गया।।