(नेताजी सुभाषचंद् बोस को समर्पित एक कविता
रचित भावसार
देशबंधु चितरंजन की तपाेवन भूमि से,
एक गजँना सुनाई थी।
अंधेरे मे सोते एक राष्ट्र की,
जीवन जयोत जगाई थी।
चलो दिल्ली कि एक दहाड़ ने,
अत्याचारीयो कि नींद उडाई थी।
दुश्मन को सीने मे थर थर,
कांप घबराहट आई थी ।
इम्फाल कोहिमा की रणभूमि से,
संगा्म शंख बजाया था ।
आजादी को खातिर बलिदान का,
संकल्प प्रगटाया था ।
कप्तान सहगल और धिललॉन से,
इतिहास लिखवाया था।
सद़ियो का धाेर अंधेरा,
पराक्रम से मिटाया था।
मांडले के अंधकार मे,
आजादी का दीप जलाया था ।
विदेश की सरजमीन से
परतंञ पर वार चलाया था।
महान राष्ट्र की यशगाथा,
बुलंद हौसलो की कहानी है।
जिसके कण कण मे सुशाेभित ,
राष्ट्ररतनौ की बलिदानी है।
आओ हम इस महापल पर,
उस तपस्वी या स्मरण करें।
जिसने लाखौ बलिदाऩाै से,
गुलामी कि जंजीरे छुडाई थी।